नई दिल्ली: भारत में बीते कुछ समय से कैदियों को मौत की सजा देने के मामलों में वृद्धि देखी गई है. एक रिपोर्ट के मुताबिक, वर्ष 2021 में मौत की सजा पाने वाले कैदियों की तादाद 488 तक पहुंच गई है, जो बीते 17 वर्षों में सर्वाधिक है. यह साल 2020 में मौत की सजा के आंकड़ों से करीब 21 प्रतिशत अधिक है. रिपोर्ट में बताया गया है कि कोरोना महामारी की वजह से अदालतों के सीमित कामकाज ने मृत्युदंड से संबंधित मामलों को दी जाने वाली प्राथमिकता को प्रभावित किया है और यही कारण है कि इसमें इजाफा देखा गया है.
‘डेथ पेनल्टी इन इंडिया’ के इन आंकड़ों की ‘राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड’ ब्यूरो (NCRB) द्वारा जारी भारत की जेल सांख्यिकी रिपोर्ट के आंकड़ों के साथ तुलना की जाती है यहां अंतर स्पष्ट दिखाई देता है. NCRB ने अपने एक सर्वे में बताया है कि 2004 के बाद से मृत्युदंड की यह तादाद सर्वाधिक है. तब 2004 में 563 कैदियों को मौत की सजा दी गई थी. रिपोर्ट के मुताबिक, जहां ट्रायल कोर्ट ने 2021 में कुल 144 मौत की सजा सुनाई, वहीं उच्च न्यायालय ने उसी वक़्त में सिर्फ 39 मामलों पर मृत्युदंड पर फैसला दिया है.
इसके अलावा उच्च न्यायालय ने साल 2020 में तुलना में मृत्युदंड से संबंधित 31 मामलों पर फैसला दिया. 2019 में यह संख्या 76 थी. सर्वोच्च न्यायालय ने गत वर्ष सितंबर में मृत्युदंड के मामलों को प्राथमिकता पर सूचीबद्ध करने के बाद भी पूरे साल सिर्फ 6 मामलों का फैसला लिया. यह आंकड़ा 2020 में 11 और 2019 में 28 था.
स्पेन की अर्थव्यवस्था 2021 में 5 प्रतिशत बढ़ी