जयपुर: (आकाशदीप की रिपोर्ट)- 17 जुलाई 2022 को भिलप्रदेश सन्देश वाहन यात्रा राजस्थान जिले के बांसवाड़ा के मानगढ़ धाम पर आयोजित हुई जिसमें चार राज्यो राजस्थान, गुजरात, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र के लगभग 5 लाख आदिवासी शामिल हुए। साथ ही भीलीस्थान (भिलप्रदेश) राज्य की मांग पुनः तेज हुई। आदिवासी संघठनो ने कहा की मानगढ धाम को भीलीस्थान राज्य की राजधानी बनाया जाए।
क्या है मानगढ धाम?- 17 नवंबर 1913 : जब मानगढ़ धाम में 1500 भील आदिवासियों ने खुद को कुर्बान किया था !
हमारे देश में जलियांवाला बाग नरसंहार को तो याद किया ही जाता है लेकिन उससे भी पहले हुए भील आदिवासियों के कत्लेआम का जिक्र ना ही इतिहास की किताबों में मिलता है और ना ही नेताओं के भाषणों में, जलियांवाला बाग नरसंहार से 6 साल पहले 17 नवंबर 1913 को राजस्थान-गुजरात की सीमा पर बसे बांसवाड़ा जिले में अंग्रेजों ने हैवानियत की सारी हदें पार कर दी थी। अंग्रेजों ने यहां लगभग 1500 भील आदिवासियों को बेरहमी से मौत के घाट उतार दिया था। मानगढ़ की पहाड़ी उस दिन खून से लाल हो गई थी। भील आदिवासियों के खून से मानगढ़ की मिट्टी सींची गई थी। आज लोग इसे ‘मानगढ़ धाम’ के नाम से जानते हैं। हर साल यहां हजारों लोग इकट्ठा होते हैं, लोगों की मांग है कि इसे राष्ट्रीय धरोहर घोषित किया जाए लेकिन आज तक उनकी मांग को नहीं सुना गया।
भील आदिवासियों ने अंग्रेजों के खिलाफ हल्ला बोल रखा था। लंबाड़ा (बंजारा समाज) से आने वाले महान गोविंद गुरु की अगुवाई में भील आदिवासियों ने किसी भी तरह के जुल्म को सहने से इनकार कर दिया था। अंग्रेजों के अलावा इन्होंने स्थानीय रजवाड़ों के खिलाफ भी मोर्चा खोल दिया जो इन्हें जानवरों जैसा जीवन जीने के लिए मजबूर कर रहे थे। भीलों ने बेगारी से मना कर दिया था। गोविंद गुरु की अगुवाई में मानगढ़ धाम पर हजारों भील 17 नवंबर 1913 को एकजुट हुए थे लेकिन किसी ने अफवाह फैला दी कि भील रजवाड़ों की रियासतों पर कब्ज़ा करने के लिए इकट्ठा हुए हैं। रजवाड़ों ने अंग्रेजों पर दबाव डालकर सेना बुला ली और फिर अंग्रेजी सेना ने एक के बाद एक करीब 1500 भील आदिवासियों की लाशें बिछा दीं।
मानगढ़ धाम को राष्ट्रीय स्मारक घोषित कराने में जुटी भाजपा को आदिवासी परिवार और भील प्रदेश मुक्ति मोर्चा की ओर से चुनौती मिल रही है। भाजपा की ओर से वाहन रैली के माध्यम से जिस मानगढ़ धाम पर अमृत महोत्सव कार्यक्रम के तहत गत दिनों करीब 12 हजार कार्यकर्ताओं को जुटाया गया था उसी स्थान पर रविवार को नए राजनीतिक संगठन NTP (नेशनल ट्राइबल पार्टी) की ओर से करीब 15 हजार लोगों की भीड़ जुटाकर साफ किया कि आदिवासी धरोहर मानगढ़ धाम का किसी भी सूरत में भगवाकरण नहीं होगा। नेताओं ने स्पष्ट किया कि भाजपा, कांग्रेस और बीटीपी (भारतीय ट्राइबल पार्टी) किसी को मानगढ़ धाम पर राजनीति करने का हक नहीं है। डूंगरपुर आदिवासी परिवार के भंवरलाल परमार ने कहा कि इस इलाके में भाजपा, कांग्रेस और बीटीपी की राजनीति खत्म करनी है। आदिवासी परिवार जिस केंडीडेट को चुनावी मैदान में खड़ा करेगा उसे ही जिताना है। गौरतलब है कि आदिवासी परिवार की ओर से डूंगरपुर में राजनीतिक संगठन के तौर पर नई पार्टी NTP का रजिस्ट्रेशन कराया गया है।
भील प्रदेश मुक्ति मोर्चा के कुछ नेताओं ने कहा कि आदिवासी परिवार यहां पर भील प्रदेश की मांग करने के लिए जुटा है। वहीं आदिवासी परिवार के मणिलाल गरासिया ने कहा कि आदिवासी प्रकृति पूजक है। उसका किसी धर्म से कोई लेना देना नहीं है। इसलिए घर पर किसी पूजा पाठ के लिए ब्राह्मण बुलाने की अनिवार्यता खत्म कर देनी चाहिए। गरासिया ने यह भी कहा कि महाराणा प्रताप का इतिहास बिना राणा पूंजा के कुछ नहीं। मुगलों के आक्रमण के समय महाराणा प्रताप को छिपने के लिए जंगल ही मिले थे। मुगलकाल में राजपूत शासकों और मुगलों के रिश्तों को लेकर भी इस मंच से टिप्पणी की गई। खास तौर पर सामान्य वर्ग को टारगेट किया गया। आदिवासी परिवार और मुक्ति मोर्चा ने भाजपा, कांग्रेस और बीटीपी को मानगढ़ धाम पर पार्टी के झंडे नहीं लगाने की हिदायत भी दी है। कहा कि मानगढ़ धाम पर आदिवासी शहीद हुए थे, इसलिए वह इस पवित्र स्थान पर राजनीति नहीं चाहते हैं।
कांग्रेस पार्टी की ओर से 9 अगस्त को 75वें स्वतंत्रता वर्ष पर 75 KM दूरी तक पैदल यात्रा निकाली जाएगी। इसे दांडी यात्रा का नाम देते हुए इसका आगाज मानगढ़ धाम से ही किया जाएगा। ऐसे में भाजपा के बाद कांग्रेस की राजनीति को लेकर आदिवासी परिवार का क्या जवाब रहता है, ये भी लोगों के बीच चर्चा का विषय बना हुआ है। रविवार को मानगढ़ धाम के पूरे रास्ते पर वाहनों का जाम लग गया। मानगढ़ धाम पर हुई भील प्रदेश संदेश यात्रा को लेकर सर्वाधिक भीड़ मध्यप्रदेश के बार्डर वाले इलाकों से आई।
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