चुनावी वर्ष में रुलाएगा प्याज

चुनावी वर्ष में  रुलाएगा प्याज
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इसे कुदरत का कहर कहें या राजनीतिक संयोग कि पिछले कुछ समय से ऐसा हो रहा है कि जब भी चुनाव आते हैं, प्याज विपक्षी दलों के लिए चुनावी मुद्दा बन जाता है. इस साल तो आठ राज्यों में चुनाव हैं , ऐसे में प्याज के कम उत्पादन से बढ़ती कीमतों का मुद्दा बनना तय है. प्याज इतना ताकतवर हो गया है कि वह दलों को सत्ता से बाहर भी कर सकता है.

बता दें कि कृषि मंत्रालय ने कम उत्पादन के कारण देश का प्याज उत्पादन चालू फसल वर्ष 2017-18 में 4.5 प्रतिशत गिरकर 214 लाख टन रहने का अनुमान लगाया है.

बता दें कि 2016-17 में प्याज उत्पादन 224 लाख टन रहा था. मंत्रालय के अनुसार चालू फसल वर्ष में प्याज की बुआई का रकबा पिछले साल के 13 लाख हैक्टेयर के मुकाबले इस साल 1.10 लाख हैक्टेयर कम होकर 11.9 लाख हैक्टेयर रहने से इसका असर उत्पादन पर पड़ेगा. जिससे प्याज की कीमतें बढ़ने की आशंका है. उल्लेखनीय है कि पिछले साल कीमतों पर अंकुश लगाने के लिए सरकार ने प्याज पर 850 डॉलर प्रति टन का न्यूनतम निर्यात मूल्य लगाया था. वैसे एक राहत वाली खबर यह है कि आम के अलावा टमाटर-आलू का उत्पादन बेहतर रहने की संभावना है.

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