अलवर (राजस्थान ) : भारत से चीन के इन दिनों जारी सम्बन्ध जग जाहिर है.दलाई लामा के अरुणाचल प्रदेश दौरे को लेकर चीन ने विरोध जताया है.चीनी मीडिया द्वारा दी गई आर्थिक धमकी नए अर्थ दे रही है. चीन ने भारत से भू-राजनीतिक रिश्तों में सुधार भले किया हो लेकिन, वह लगातार आर्थिक रिश्तों को बेहतर बनाने का पक्षधर है. दरअसल, चीन विस्तारवादी देश होने के अलावा आर्थिक महत्वाकांक्षा से संपन्न राष्ट्र है. उसकी सोच है कि यदि उसकी आर्थिक तरक्की की रफ्तार बनी रही तो एक दिन वह दुनिया के शीर्ष पर होगा, इसलिए वह अपनी आर्थिक तरक्की की कीमत पर किसी तरह का विवाद नहीं चाहता. जाहिर है कि इन दिनों भारत-चीन की सीमाएं ही नहीं बल्कि उनके आर्थिक हित भी उलझे हुए हैं.इस उलझन को तब देखा गया जब पिछले वर्ष दीपावली के मौके पर भारतीय बाजार में चीनी सामानों का बहिष्कार किया था.
बेशक सरकार के थिंक टैंक RSS का यह कहना बिलकुल वाजिब है कि चीन अंतरराष्ट्रीय मोर्चे पर भारत के हितों को लगातार नुकसान पहुंचा रहा है. वह तो न तो आतंकी मौलाना मसूद अजहर को संयुक्त राष्ट्र की तरफ से प्रतिबंधित करने दे रहा है और न ही .NSG में भारत को शामिल होने दे रहा है. यही नहीं चीन भारत की आपत्तियों को नज़रंदाज करते हुए पाक अधिकृत कश्मीर में व्यावसायिक प्रतिष्ठान भी खड़े कर रहा हैं. यह उचित नहीं है. संघ चाहता है कि भारत चीन के विरुद्ध कड़ा रुख अपनाए .
उधर, चीन को भारत के प्रति कड़ा रुख अपनाकर एक तीर से कई निशाने साध रहा है . वह अमेरिका और उसके दोस्तों को संदेश तो देना ही चाहता है, साथ ही वह अपने मित्र पाकिस्तान को भी भारत के विरुद्ध उकसाने से बाज नहीं आना चाहता.भारत ने दलाई लामा को मानवता के आधार पर शरण दे रखी है. वह चीन को खुश करने के लिए कभी-कभी तिब्बतियों पर दमन भी करता है. इसके बावजूद अगर बदले हालात में भारत सरकार को चीन पर राजनयिक दबाव बनाना है, तो उसे दलाई लामा के प्रतीकात्मक दौरे से आगे बढ़कर और भी कुछ प्रयास करने होंगे.तभी चीन को समझ आएगी.
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