हाल ही में उत्तर प्रदेश के कासगंज में एक बरात निकाली गई. देखने को यह बारात किसी वीआईपी की बारात दिखाई दे रही थी, लेकिन असल में सच्चाई कुछ और ही थी. जातिवाद खत्म हो गया कहने वालों के लिए यह जानना बहुत जरुरी है कि यूपी आज भी सालों पहले बनी हुई गन्दी जातिवादी व्यवस्था में जी रहा है.
15 जुलाई को यूपी के हाथरस निवासी संजय जाटव और कासगंज के निजामपुर गांव की दलित शीतल की शादी थी. शादी से पहले ही गाँव के कुछ दबंग ठाकुरों ने चेतावनी दे रखी थी कि, गाँव के इन रास्तों से बैंड-बाजों और घोड़ी पर बारात ले जाना बिलकुल मना है. इस बात में खैर कोई तर्क नहीं था लेकिन यह जातिवाद की भाषा थी, जो हमेशा से हमारे देश का हिस्सा रही है.
हालाँकि इन सबके के विपरीत गाँव में संजय, शीतल के घर धूमधाम से बारात लेकर गया, और बारातियों ने खूब मजे किए. लेकिन इन सबके पीछे एक बड़ा सहयोग था पुलिस का. जिसमें बारात की सुरक्षा के लिए एक एसपी रैंक के अधिकारी, एडीएम और एसडीएम चल रहे थे. इतना ही नहीं बारात के संग-संग 10 इंस्पेक्टर, 22 सब इंस्पेक्टर, 35 हैड कांस्टेबल, 100 कांस्टेबल और पीएसी की एक प्लाटून भी चल रही थी.
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