70 साल में पहली बार वोट डाल रहा दलित समुदय, किसने छीना था अधिकार ?

70 साल में पहली बार वोट डाल रहा दलित समुदय, किसने छीना था अधिकार ?
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श्रीनगर: जम्मू-कश्मीर के विधानसभा चुनाव इस बार कई वजहों से खास हैं। आर्टिकल 370 और 35ए हटने के बाद पहली बार यह चुनाव हो रहे हैं, और लद्दाख अब अलग केंद्र शासित प्रदेश बन चुका है। लेकिन इन सबसे अलग एक महत्वपूर्ण बात यह है कि इस बार हजारों ऐसे लोग पहली बार मतदान करेंगे जो पिछले 70 साल से यहां बसने के बावजूद इस लोकतांत्रिक प्रक्रिया का हिस्सा नहीं बन पाए थे। इनमे वे लोग हैं, जो 1947 में भारत-पाकिस्तान विभाजन के समय पश्चिमी पाकिस्तान से जम्मू-कश्मीर में आकर बसे थे, लेकिन उन्हें नागरिकता नहीं मिली थी। साथ ही वाल्मीकि समुदाय के वो लोग भी, जो महामारी के समय पंजाब और अन्य राज्यों से यहाँ लाकर बसाए गए थे, उनसे वादे किए गए थे कि उन्हें सब सुविधा दी जाएगी, लेकिन नौकरी के नाम पर उन्हे केवल मैला धोने का काम मिला और अधिकार के नाम पर तिरस्कार। 70 सालों में वो कभी भी कश्मीर के नागरिक नहीं बन पाए।  

ज्यादातर लोग जम्मू, कठुआ और राजौरी जैसे जिलों में बस गए थे, लेकिन इन्हें सरकारी नौकरियों, जमीन खरीदने और यहां तक कि वोट डालने का भी अधिकार नहीं था। आर्टिकल 370 की वजह से यह समुदाय अपने ही देश में बाहरी नागरिक जैसा था। अब 370 के हटने के बाद इन्हें नागरिकता, जमीन खरीदने, नौकरी करने और वोट डालने के अधिकार मिले हैं। इसलिए यह चुनाव इनके लिए बहुत अहम है क्योंकि अब ये लोग लोकतंत्र में हिस्सा लेकर अपने भविष्य को तय कर सकेंगे।

सवाल यह उठता है कि इन दलितों को इतने दशकों तक अधिकारों से वंचित क्यों रखा गया? कांग्रेस, जो खुद को दलितों का सबसे बड़ा हितैषी बताती है, उसने इस मुद्दे पर कभी कोई आवाज़ क्यों नहीं उठाई ? उल्टा कांग्रेस ने तो आर्टिकल 370 हटाने का विरोध किया, जबकि इसी आर्टिकल को हटाने से ही इन दलितों को उनके अधिकार मिले हैं। दलितों की आवाज़ उठाने का दावा करने वाले भीम आर्मी के चंद्रशेखर ने भी कभी इस मुद्दे पर कोई बयान ही नहीं दिया, शायद मुस्लिम वोट बैंक की राजनीति के चलते वे भी चुप रहे।

मीम-भीम का नारा लगाने वाले असदुद्दीन ओवैसी से तो कोई उम्मीद भी नहीं की जा सकती, क्योंकि उनके समुदाय के लोग ही दलितों के अधिकार छीनने में शामिल थे, और इसमें कांग्रेस ने उनका साथ दिया।खुद को अंबेडकरवादी कहने वाले कितने नेताओं ने इन दलितों के लिए आवाज़ उठाई ? क्या जम्मू कश्मीर के दलित, दलित नहीं माने जाते थे ? अब, आर्टिकल 370 हटने के बाद, यह दलित समुदाय न सिर्फ अपने वोट का इस्तेमाल करके सरकार चुन सकता है, बल्कि सरकारी नौकरियों और अन्य अधिकारों का भी लाभ उठा सकता है। पहले इनके लिए केवल सफाईकर्मी की नौकरी तक सीमित रास्ते थे, लेकिन अब नए अवसर इनके लिए खुले हैं।

यह दलित समुदाय के लिए सोचने का समय है कि उनका असली शुभचिंतक कौन है—वो जो केवल बातें करता है, या वो जो वास्तव में अधिकार दिलाने का काम करता है?

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