नई दिल्ली: पुरे देश को हिंसा की आग में झोंक देने वाला एससी/एसटी विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा है, 2 अप्रैल को इसी एक्ट के खिलाफ विरोध में भारत बंद और प्रदर्शन कर चुके दलित समुदाय ने 1 मई को एक बार फिर इस मुद्दे को लेकर सड़कों पर उतरने की तैयार की है. दलित कानून में संशोधन के खिलाफ 1 मई को देश के कई दलित संगठन प्रतिरोध दिवस मनाएंगे. सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ इस दिन देशभर के दलित इकठ्ठा होंगे और जगह-जगह प्रदर्शन करेंगे.
दलित मूवमेंट फॉर जस्टिस (NDMJ) के महासचिव डॉक्टर वीए रमेन नाथन ने विरोध प्रदर्शन को शांतिपूर्ण आयोजित करने की अपील की है. नाथन के मुताबिक, दलितों की आवाज बुलंद करने के लिए बने नेशनल कोअलिशन के बैनर तले एक मई को सभी जिला और प्रदेश मुख्यालयों में शांतिपूर्ण प्रदर्शन करने का फैसला किया है.नाथन ने कहा कि 1 मई को अंतरराष्ट्रीय मजदूर दिवस भी मनाया जाता है. इसीलिए इस दिन को चुना गया है. नाथन की मानें, तो 'भारत के मजदूर वर्ग के ज्यादातर लोग अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति से आते हैं. हमें दलितों, आदिवासियों, औरतों और बच्चों के मानवाधिकारों के लिए बहुत कुछ करना है. वे अब भी हिंसा और भेदभाव झेल रहे हैं.
न्होंने सामाजिक कार्यकर्ताओं, कामगार समूहों, मजदूर संगठनों, मानवाधिकार के लिए काम करने वाली संस्थाओं, महिला संस्थाओं से सहयोग मांगा है. उन्होंने कहा कि इस दिन देशभर में शांतिपूर्ण प्रदर्शन किए जाएंगे. नेशनल कोअलिशन ने सरकार के सामने 12 प्रमुख मांगें रखी हैं. उनकी मांगों में एक मांग यह भी है कि भारत सरकार यह तय करे कि दलित कानून (अत्याचार से संरक्षण) की स्थिति वही रहे जो सुप्रीम कोर्ट के 20 मार्च के फैसले से पहले थी, न तो इसमें जूडिशरी दखल दे और न ही संसद.
मोदी का वादा, दलितों के साथ अन्याय नहीं होगा
अदालत के फैसले से पिछड़ों को नुकसान- केंद्रीय मंत्री
अंबेडकर जयंती पर पंजाब में हिंसा