पटना: बिहार के नवादा जिले के कृष्णा नगर गांव में बुधवार, 19 सितंबर को एक दुखद घटना घटी, जहां दलित समुदाय के एक समूह ने लंबे समय से चल रहे भूमि विवाद के कारण दूसरे दलित समूह की बस्ती में आग लगा दी। इस घटना में कई रिपोर्ट्स के अनुसार 80 से 100 घर जलकर खाक हो गए, जबकि पुलिस का कहना है कि लगभग 20-25 घर जल गए हैं। यह विवाद भूमि को लेकर था, जिसमें एक दलित समूह ने सरकारी ज़मीन पर अपना दावा किया और विवाद के चलते उन्होंने बस्ती पर हमला कर दिया।
मुफस्सिल थानाक्षेत्र अंतर्गत कृष्णानगर में कुछ लोगों द्वारा घर में आग लगा देने के संबंध में पुलिस अधीक्षक नवादा का आधिकारिक बयान#नवादा#nawadapolice @bihar_police pic.twitter.com/yfhU2zEpU7
— Nawada Police (@nawadapolice) September 18, 2024
इस विवाद के चलते पुलिस ने 10 लोगों को गिरफ्तार किया है। सूत्रों के मुताबिक, पासवान और माझी समुदाय के बीच तनाव का यह मामला था, जिसमें नंदू पासवान नामक व्यक्ति और उसके साथियों ने इस हिंसक घटना को अंजाम दिया। हालांकि, यह घटना दलितों के आपसी भूमि विवाद से उत्पन्न हुई थी, लेकिन विपक्षी पार्टियों ने इसे जातीय अत्याचार का मुद्दा बनाकर प्रचारित किया। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस और राजद के नेताओं ने सोशल मीडिया पर इस घटना को लेकर NDA सरकार पर हमला किया। कांग्रेस के अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे और राजद प्रमुख तेजस्वी यादव ने इसे 'दलित अत्याचार' के रूप में प्रस्तुत किया, जबकि इस घटना की असली वजह स्थानीय भूमि विवाद थी और हमला करने वाले भी दलित ही थे।
बिहार के नवादा में महादलित टोला पर दबंगों का आतंक NDA की डबल इंजन सरकार के जंगलराज का एक और प्रमाण है।
— Mallikarjun Kharge (@kharge) September 19, 2024
बेहद निंदनीय है कि करीब 100 दलित घरों में आग लगाई गई, गोलीबारी की गई और रात के अँधेरे में ग़रीब परिवारों का सब कुछ छीन लिया गया।
भाजपा और उसके सहयोगी दलों की दलितों-वंचितों…
खड़गे और यादव ने इसे बिहार की एनडीए सरकार की विफलता का प्रतीक बताते हुए सोशल मीडिया पर बयान जारी किए, जिनमें इस घटना के वास्तविक कारणों को नजरअंदाज किया गया। इस प्रकार की बयानबाजी ने राजनीतिक माहौल को और गर्म कर दिया, लेकिन सवाल यह उठता है कि जब पीड़ित और आरोपी दोनों ही दलित समुदाय से थे, तो इसमें जातिवाद का मुद्दा क्यों बनाया गया? इसकी जगह पीड़ितों से मुलाकात कर आरोपियों के खिलाफ कार्रवाई पर जोर क्यों नहीं दिया गया ?
विपक्षी पार्टियों द्वारा जातिवाद की आग भड़काने का क्या औचित्य था? जब दोनों समूह दलित समुदाय से थे, तो उनकी आपसी एकता को बढ़ावा देने के बजाय इस घटना को जातीय अत्याचार का रूप क्यों दिया गया? इन पार्टियों का झूठा नैरेटिव फैलाना और दलितों के बीच और अधिक फूट डालने का प्रयास निंदनीय है, क्योंकि इससे समाज में सामुदायिक एकता को नुकसान पहुंचता है।
'अल्लाह बदला लेगा..', लेबनान में धमाकों से भड़के मुस्लिम देश, ईरानी राजदूत की आँख फूटी
'हर देशविरोधी के साथ खड़े हैं राहुल गांधी..', PAK के समर्थन पर भड़के अमित शाह