नई दिल्ली: केंद्र सरकार के एक फैसले से कांग्रेस में घमासान शुरू हो गया है। दरअसल, केंद्र सरकार ने पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के लिए एक स्मारक बनाने का निर्णय लिया है। इस पर कांग्रेस सांसद दानिश अली ने केंद्र पर गंदी राजनीति का आरोप लगाया और इसे प्रणब मुखर्जी के "आरएसएस के प्रति प्रेम" से जोड़ा।
दानिश अली ने अपने बयान में कहा कि मोदी सरकार ने पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को राजघाट पर स्मारक के लिए जमीन देने से इनकार कर दिया, लेकिन प्रणब मुखर्जी के लिए यह फैसला लिया। उन्होंने इसे "निम्न स्तर की राजनीति" और मनमोहन सिंह जैसे नेता का अपमान बताया। अली ने यह भी आरोप लगाया कि प्रणब मुखर्जी को यह सम्मान संघ मुख्यालय नागपुर जाकर श्रद्धांजलि देने और संघ संस्थापक हेडगेवार को "धरतीपुत्र" कहने के कारण दिया गया। प्रणब मुखर्जी की बेटी और कांग्रेस नेता शर्मिष्ठा मुखर्जी ने दानिश अली के आरोपों को खारिज करते हुए कड़ा पलटवार किया। उन्होंने इसे "अज्ञानता और पार्टी के इतिहास की समझ की कमी" का परिणाम बताया। शर्मिष्ठा ने कहा, "अगर प्रणब मुखर्जी आरएसएस से जुड़े होते, तो कांग्रेस ने उन्हें 45 साल तक महत्वपूर्ण ज़िम्मेदारियाँ क्यों सौंपीं? क्या इंदिरा गांधी, सोनिया गांधी और डॉ. मनमोहन सिंह जैसे नेता यह नहीं समझ सकते थे?"
शर्मिष्ठा ने कहा कि इस तरह के बयान कांग्रेस के भीतर कुछ नेताओं की अज्ञानता और पूर्वाग्रह को दर्शाते हैं। उन्होंने आरोप लगाया कि कुछ नेता इस तरह की बातें राहुल गांधी को खुश करने के लिए कर रहे हैं, जो पार्टी के पूर्ववर्तियों का भी अपमान है। शर्मिष्ठा मुखर्जी ने राहुल गांधी की वियतनाम यात्रा पर भी सवाल उठाए, खासकर मनमोहन सिंह के राष्ट्रीय शोक के दौरान। उल्लेखनीय है कि, पूर्व पीएम मनमोहन के निधन पर देश भर में 7 दिन का शोक रखा गया था और उसी दौरान राहुल गांधी नए साल का जश्न मनाने वियतनाम चले गए थे। इसको लेकर शर्मिष्ठा ने कहा, "अगर राहुल गांधी एक साल के लिए नया साल का जश्न, विदेश में मनाने से परहेज कर लेते, तो क्या नुकसान होता? यह तब और भी संवेदनशील हो जाता है, जब पूरा देश मनमोहन सिंह के निधन पर शोक मना रहा था।"
गौरतलब है कि, प्रणब मुखर्जी कांग्रेस के बड़े नेता थे और उन्होंने पार्टी को कई दशक तक सेवा दी। उनके ही कार्यकाल में वे राष्ट्रपति बने, लेकिन उनकी आरएसएस मुख्यालय यात्रा के बाद से कांग्रेस के भीतर उनके प्रति नजरिया बदल गया। प्रणब मुखर्जी का संघ के संस्थापक हेडगेवार को "धरतीपुत्र" कहना कांग्रेस के लिए असहज कर देने वाला था। प्रणब मुखर्जी के स्मारक का विरोध करना और उनके आरएसएस से जुड़ाव को तूल देना कांग्रेस के भीतर एक गहरे अंतर्विरोध को उजागर करता है। यह सवाल खड़ा करता है कि क्या कांग्रेस वाकई अपने वरिष्ठ नेताओं का सम्मान करती है, या फिर राजनीतिक लाभ के लिए उनके विरासत को भी विवादित बना देती है?
केंद्र द्वारा प्रणब मुखर्जी के स्मारक का फैसला और कांग्रेस का विरोध इस बात का प्रमाण है कि पार्टी आज अपनी विरासत को लेकर उलझन में है। जहां एक ओर प्रणब दा को पार्टी के सबसे सम्मानित नेताओं में गिना जाता है, वहीं दूसरी ओर उनके प्रति यह विरोध कांग्रेस की आत्मचिंतन की जरूरत को रेखांकित करता है। आखिर, अपने ही नेता के स्मारक का विरोध करना, कांग्रेस की राजनीतिक परिपक्वता पर गंभीर सवाल खड़े करता है।