न्यूयॉर्क: लोगों की कार्यशैली में भारी बदलाव आया है सूचना एवं टेक्नोलॉजी के इस युग में। काम के मामले में दिन और रात की सीमाएं लगभग खत्म हो चुकी हैं। बड़ी कंपनियों में अलग-अलग शिफ्टों में 24 घंटे काम होता है। विकास के साथ बदलाव के आने में कोई बुराई नहीं है लेकिन काम को लेकर शिफ्टों का यह जो सिस्टम है, वह एंप्लॉयीज के लिए बहुत ही नुकसानदेह है। जर्नल स्लीप हेल्थ में प्रकाशित एक स्टडी के मुताबिक, जो एंप्लॉयी 9-5 शेड्यूल से हटकर कोई और शिफ्ट में काम करते हैं तो उनको बहुत सी शारीरिक और मानसिक समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है। रिपोर्ट के मुताबिक ऐसे लोगों में वजन का बढ़ना, नींद न आना और मेटाबॉलिक विकार जैसे डायबिटीज आदि समस्याएं पैदा हो सकती हैं।
अमेरिका की यूनिवर्सिटी ऑफ विसकोंसिन स्कूल ऑफ मेडिसिन ऐंड पब्लिक हेल्थ के एक वैज्ञानिक मार्जरी गिवंस ने बताया, ‘शिफ्टवर्क वाले एंप्लॉयीज तुरंत ही नींद न आने जैसी समस्या का शिकार हो जाते हैं क्योंकि उनको रात में, अलग-अलग शिफ्टों में और कई बार ड्यूटी टाइम से भी अधिक समय तक काम करना पड़ता है।’ शोधकर्ताओं ने 2008-2012 तक हेल्थ ऑफ विसकोंसिन के सर्वे में जुटाये गये डेटा पर शोध किया।
इस शोध के दौरान 1593 प्रतिभागियों का विभिन्न मापदंडों जैसे शारीरिक परीक्षण से शारीरिक द्रव्यमान सूचकांक और मोटापा आदि की समस्या के आधार पर मूल्यांकन किया गया। इस शोध के परिणाम में सामने आया कि मोटापे की समस्या अन्य वर्कर्स (34.7 फीसदी) की तुलना में शिफ्ट में काम करने वाले लोगों (47.9 फीसदी) में ज्यादा पाई गई। उनमें नींद से जुड़ी समस्याएं भी आम लोगों की तुलना में बहुत ही ज्यादा पाई गईं जैसे उनमें अनिंद्रा की समस्या से 23.6 फीसदी जबकि आम लोग 16.3 फीसदी इस समस्या से ग्रसित पाये गये।
उसी तरह जिनलोगों को ठीक ढंग से नींद नहीं आती उनमें भी शिफ्टवर्क्स 53.0 फीसदी थे जबकि आमलोग 42.9 फीसदी। गिवंस और उनके सहकर्मियों ने पाया कि नींद न आने की समस्या अन्य शारीरिक विकारों जैसे मोटापा और डायबिटीज को भी पैदा करती हैं। इससे यह भी बात सामने आई कि शिफ्ट में काम करने के बाद अगर ढंग से सोया जाये तो भी कुछ शारीरिक विकारों से छुटकारा पाया जा सकता है।