नई दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज शनिवार (17 अगस्त) को वॉयस ऑफ ग्लोबल साउथ समिट (VOGSS) में कहा कि कोविड के बाद दुनिया अनिश्चितता से जूझ रही है और आतंकवाद तथा जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों का सामना कर रही है, ऐसे में पिछले दशक में स्थापित वैश्विक शासन और वित्तीय संस्थान आज के मुद्दों से निपटने में कम पड़ गए हैं। उल्लेखनीय है कि, भारत वर्चुअल प्रारूप में वॉयस ऑफ ग्लोबल साउथ समिट की मेजबानी कर रहा है, जिसमें वैश्विक दक्षिण के देशों को एक मंच पर विभिन्न मुद्दों पर अपने दृष्टिकोण और प्राथमिकताओं को साझा करने के लिए एक साथ लाने की परिकल्पना की गई है।
इस शिखर सम्मेलन में अपने उद्घाटन भाषण में पीएम मोदी ने कहा कि, "2022 में, जब भारत ने जी20 की अध्यक्षता संभाली, तो हमने जी20 को एक नया ढांचा देने का संकल्प लिया। वॉयस ऑफ ग्लोबल साउथ समिट एक ऐसा मंच बन गया, जहां हमने विकास से जुड़ी समस्याओं और प्राथमिकताओं पर खुलकर चर्चा की। और भारत ने ग्लोबल साउथ की आशाओं, आकांक्षाओं और प्राथमिकताओं के आधार पर जी20 एजेंडा तैयार किया।" पीएम मोदी ने कहा कि, "हमने समावेशी और विकासोन्मुखी दृष्टिकोण के साथ जी20 को आगे बढ़ाया। इसका सबसे बड़ा उदाहरण वह ऐतिहासिक क्षण था जब अफ्रीकी संघ को जी20 की स्थायी सदस्यता मिली।"
इसके साथ ही पीएम मोदी ने संघर्षों और अन्य चिंताओं के बीच मौजूदा वैश्विक परिदृश्य में अनिश्चितता पर प्रकाश डाला और कहा कि वैश्विक शासन और वित्तीय संस्थान आज की चुनौतियों से निपटने में "अक्षम" रहे हैं। उन्होंने कहा कि, "आज हम ऐसे समय में मिल रहे हैं, जब दुनिया भर में अनिश्चितता का माहौल है। दुनिया कोविड के प्रभाव से पूरी तरह बाहर नहीं निकल पाई है। दूसरी ओर, युद्ध की स्थितियों ने हमारी विकास यात्रा के लिए चुनौतियां खड़ी कर दी हैं। हम जलवायु परिवर्तन की चुनौती का सामना कर रहे हैं और अब स्वास्थ्य सुरक्षा, खाद्य सुरक्षा और ऊर्जा सुरक्षा की चुनौतियां भी हैं।"
उन्होंने कहा कि, "आतंकवाद, उग्रवाद और अलगाववाद हमारे समाजों के लिए गहरे खतरे बन गए हैं। प्रौद्योगिकी विभाजन और प्रौद्योगिकी से अन्य आर्थिक और सामाजिक चुनौतियां सामने आ रही हैं।" उन्होंने आगे वैश्विक दक्षिण के देशों से एक साथ आने और एक-दूसरे की ताकत के रूप में काम करने का आह्वान किया। प्रधानमंत्री ने कहा, "पिछले दशक में निर्मित वैश्विक शासन और वित्तीय संस्थाएँ इस सदी में सामने आने वाली चुनौतियों से लड़ने में अक्षम साबित हुई हैं। यह समय की मांग है कि वैश्विक दक्षिण के देश एक साथ आएं, एक स्वर में एक-दूसरे की ताकत बनें। हमें एक-दूसरे के अनुभवों से सीखना चाहिए, अपनी क्षमताओं को साझा करना चाहिए और दुनिया की दो-तिहाई मानवता को मान्यता देनी चाहिए।"
प्रधानमंत्री ने आगे कहा कि, "एक सतत भविष्य के लिए एक सशक्त वैश्विक दक्षिण" की व्यापक थीम के साथ तीसरा वॉयस ऑफ ग्लोबल साउथ समिट (VOGSS) पिछले शिखर सम्मेलनों में दुनिया को प्रभावित करने वाली कई जटिल चुनौतियों पर चर्चाओं का विस्तार करने के लिए एक मंच के रूप में कार्य करेगा, जैसे कि संघर्ष, खाद्य और ऊर्जा सुरक्षा संकट, जलवायु परिवर्तन - ये सभी विकासशील देशों को असमान रूप से गंभीर रूप से प्रभावित करते हैं। भारत के 'वसुधैव कुटुम्बकम' के दर्शन पर आधारित यह आयोजन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 'सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास और सबका प्रयास' के दृष्टिकोण का विस्तार है।
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