राजीव गांधी खेल रत्न से सम्मानित देश की पहली महिला पैरा एथलीट दीपा मलिक ने सोमवार को संन्यास की घोषणा कर दी. पैरालंपिक समिति के अध्यक्ष के रूप में अपना पद संभालने के बाद आज उन्होंने यह बड़ा फैसला लिया. दीपा का कहना है कि उनके अंदर का खिलाड़ी हमेशा जिंदा रहेगा, देश में नवोदित पैरा-एथलीटों को बढ़ावा देने के लिए बड़ी तस्वीर देखने की जरूरत है.हितों के टकराव से बचने के लिए दीपा मलिक को भारी मन से यह निर्णय लेना पड़ा. दरअसल, राष्ट्रीय खेल संहिता के अनुसार, एक सक्रिय एथलीट किसी भी महासंघ में आधिकारिक पद नहीं रख सकता और इसी नियम के चलते हरियाणा से आने वालीं इस एथलीट को संन्यास की घोषणा करनी पड़ी. दीपा मलिक ने यह भी इशारा किया कि वह 2022 के एशियाई खेलों के दौरान अपने फैसले पर फिर से विचार कर सकती हैं.
फरवरी में ही निर्विरोध चुनी गईं थीं अध्यक्ष: रियो ओलंपिक में गोला फेंक (एफ-53 स्पर्धा) में रजत पदक जीतने वाली 49 साल की दीपा को 1 फरवरी 2020 को ही भारतीय पैरालंपिक समिति (पीसीआई) की नई अध्यक्ष चुना गया था, लेकिन इसके लिए हुए चुनाव के नतीजे दिल्ली उच्च न्यायालय में एक लंबित मामले की सुनवाई के बाद मान्य होने थे. पूर्व अध्यक्ष राव इंदरजीत सिंह को हटाए जाने के बाद कार्यवाहक अध्यक्ष नियुक्त हुए गुरशरण सिंह भी निर्विरोध महासचिव चुने गए थे. कविंदर चौधरी और शशि रंजन को उपाध्यक्ष जबकि एम महादेवा को कोषाध्यक्ष चुना गया था. नाले नंदकिशोर बाबूराव और कांतिलाल परमार सह सचिव बने थे.
कई खेलों में पारंगत हैं दीपा: शॉटपुट एवं जेवलिन थ्रो के साथ-साथ तैराकी एवं मोटर रेसलिंग से जुड़ी एक विकलांग भारतीय खिलाड़ी हैं जिन्होंने 2016 पैरालंपिक में शॉटपुट में रजत पदक जीतकर इतिहास रचा. 30 की उम्र में तीन ट्यूमर सर्जरीज और शरीर का निचला हिस्सा सुन्न हो जाने के बावजूद उन्होने न केवल शॉटपुट एवं ज्वलीन थ्रो में राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिता में पदक जीते हैं, बल्कि तैराकी एवं मोटर रेसलिंग में भी कई स्पर्धाओं में हिस्सा लिया है. उन्होने भारत की राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में 33 स्वर्ण तथा 4 रजत पदक प्राप्त किए हैं. वे भारत की एक ऐसी पहली महिला है जिसे हिमालय कार रैली में आमंत्रित किया गया.
वर्ष 2008 तथा 2009 में उन्होने यमुना नदी में तैराकी तथा स्पेशल बाइक सवारी में भाग लेकर दो बार लिम्का बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में अपना नाम दर्ज कराया. यही नहीं, सन 2007 में उन्होने ताइवान तथा 2008 में बर्लिन में जवेलिन थ्रो तथा तैराकी में भाग लेकर रजत एवं कांस्य पदक प्राप्त किया. कॉमनवेल्थ गेम्स की टीम में भी वे चयनित की गई. पैरालंपिक खेलों में उनकी उल्लेखनीय उपलब्धियों के कारण उन्हे भारत सरकार ने अर्जुन पुरस्कार प्रदान किया. दीपा ने 2009 में शॉट पुट में अपना पहला पदक(कांस्य) जीता था. इसके अगले ही साल ऐसा कमाल किया कि इंग्लैंड में शॉटपुट, डिस्कस थ्रो और जेवलिन तीनों में गोल्ड मेडल जीते. उस साल दीपा के सितारे बुलंदी पर रहे और उसने चाइना में पैरा एशियन गेम्स में कांस्य पदक जीता. वहां कांस्य जीतने वाली दीपा पहली भारतीय महिला बनीं.
दीपा ने 2011 में वर्ल्ड एथलेटिक्स चैंपियनशिप में रजत पदक जीता. उसी साल शारजहां में वर्ल्ड गेम्स में दो कांस्य पदक जीते. वर्ष 2012 में मलेशिया ओपन एथलेटिक्स चैंपियनशिप में जेवलिन व डिस्कस थ्रो में दो स्वर्ण पदक जीते. 2014 में चाइना ओपन एथलेटिक्स चैंपियनशिप बीजिंग में शॉटपुट में स्वर्ण पदक जीता. उसी साल इंच्योन एशियन पैरा गेम्स में रजत पदक जीकर रिकॉर्ड बनाया.
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