समस्त पापों का नाश करती है देवउठनी ग्यारस

समस्त पापों का नाश करती है देवउठनी ग्यारस
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हिन्दू धर्म में संस्कृति, रीतिरिवाज और त्यौहारों की बहुत मान्यता रहती है। ऐसा ही हिन्दू धर्म का प्रमुख त्यौहार दिपावली बहुत ही जल्द हर घर में दस्तक देने वाला है, खासबात तो यह है की दिवाली के साथ ही और भी कई त्यौहार हैं जो एक के बाद एक आते है। इनमें से ऐसा ही एक प्रमुख त्यौहार देवउठनी ग्याहरस होता है। हिन्दू धर्म में इस त्यौहार की इसलिए इतनी मान्यता रहती है क्योंकि इस दिन हिन्दू धर्म के सारे देव उठ जाते हैं और शुर्भ मूहर्त की शुरूआत हो जाती है यहां पर हमारा मतलब शादी से है जी हां देव उठनी ग्यारस के बाद से ही हिन्दू धर्म में शादी का सीज़न साल भर तक बना रहता है। देव उठनी ग्यारस के बाद ही शादी का मूहर्त निकल पाता है इसलिए हर हिन्दू परिवार के लिए यह दिन खास होता है। साल भर में यह एकादशी एक बार ही आती है इसलिए इस पर्व कि बहुत मान्यता रहती है। 

हिन्दू धर्म में इस एकादशी को प्रबोधनी एकादशी और पाप मुक्त एकादशी भी कहा जाता है। इस एकादशी को पाप मुक्त एकादशी इसलिए कहा जाता है क्योंकि हिन्दू मान्यता के अनुसार राजसूय यज्ञ करने से जितने पूण्य की प्राप्ति होती है उससे कई गुना अधिक पुण्य की प्रप्ति प्रबोधिनी एकादषी का व्रत करने से होती है। यह कार्तिक माह की शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि के दिन देव उठनी अथवा प्रबोधिनी एकादशी मनाई जाती है। यह दिन दिवाली के 10 दिन बाद 11 वे दिन आता है।  हिन्दू पंचांग के अनुसार साल 2017 में प्रबोधिनी एकादशी व्रत 31 अक्टूबर को मनाया जायेगा। 

हिन्दू धर्म में आज के समय में जो भी संस्कृति, रीतिरिवाज या  पर्व मनाये जाते हैं इनके पीछे एक पौराणिक कथा जरूरी विद्यमान रहती है जिसकी वजह से ही पर्व मनाया जाता है ऐसे ही देव उठनी ग्यारस के पीछे भी एक कथा का प्रचलन है जिसकी वजह से यह पर्व मनाया जाता है ऐसा कहा जाता है की एक बार की बात है माता लक्ष्मी ने भगवान श्री विष्णु से कहा कि प्रभु आप या तो दिन रात जागते रहते हैं या फिर लाखों करोड़ों वर्ष तक सोते रहते हैं और सृष्टि का भी विनाश कर डालते हैं।

इसलिये हे नाथ आपको हर साल नियमित रूप से निद्रा लेनी चाहिये। तब श्री हरि बोले देवी आप ठीक कहती हैं। मेरे जागने का सबसे अधिक कष्ट आपको ही सहन करना पड़ता है, आपको क्षण भर के लिये भी मेरी सेवा करने से फुर्सत नहीं मिलती। आपके कथनानुसार मैं अब से प्रतिवर्ष वर्षा ऋतु में चार मास तक के लिये शयन किया करूंगा ताकि आपको और समस्त देवताओं को भी कुछ अवकाश मिले। मेरी यह निद्रा अल्पकालीन एवं प्रलयकारी महानिद्रा कहलायेगी। मेरी इस निद्रा के दौरान जो भी भक्त, भावना पूर्वक मेरी सेवा करेंगें और मेरे शयन व जागरण को उत्सव के रूप में मनाते हुए विधिपूर्वक व्रत, उपवास व दान-पुण्य करेंगें उनके यहां मैं आपके साथ निवास करूंगा।


देवोत्थान एकादशी 2017 तिथि व मुहूर्त
देवोत्थान एकादशी तिथि- 31 अक्टूबर 2017
एकादशी तिथि आरंभ- 19:03 बजे से 30 अक्टूबर 2017
एकादशी तिथि समाप्त- 18:55 बजे 31 अक्टूबर 2017

 

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