सीटों के आंकड़े बताएँगे कैसा होगा आप और केजरीवाल का सफर

सीटों के आंकड़े बताएँगे कैसा होगा आप और केजरीवाल का सफर
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नई दिल्ली: सभी एग्जिट पोल में एक बार फिर से आम आदमी पार्टी की सरकार बनती नजर आ रही है, हालांकि सीटों के आंकड़ों को लेकर अलग-अलग दावे भी किए जा रहे हैं। आप को 55 से ज्यादा सीटें देने का दावा भी एग्जिट पोल कर रहे हैं और इससे कम सीटें भी आने की बात कही जा रही है। 55 से ज्यादा और इससे कम सीटों के मायने भी अलग-अलग हो गए हैं।

अगर 55 से ज्यादा सीटें जीतीं तो
आप ने यह चुनाव काम की राजनीति को मुद्दा बनाकर लड़ा है और पार्टी ने पूरे चुनाव प्रचार में पिछले पांच वर्ष में हुए कामों को ही आधार बनाया हुआ है। इनमें दिल्ली की जनता के लिए फ्री योजनाएं भी शामिल हैं। आप ने 2015 के विधानसभा चुनाव में 67 सीटों पर जीत हासिल की थी और अगर पार्टी इस बार भी 55 से ज्यादा सीटों पर जीत हासिल करती है तो यह आप सरकार के गवर्नेंस मॉडल की भी जीत होगी। अगले पांच साल केजरीवाल को सरकार चलाने में कोई मुश्किल नहीं होगी और वे अपने हिसाब से निर्णय ले सकेंगे।

केजरीवाल की बनेगी अलग पहचान
आप सरकार दावे करती है कि जितने काम दिल्ली में पांच साल में हुए हैं, उतने पूरे देश में किसी भी राज्य में नहीं हुए हैं। इसके अलावा केंद्र की बीजेपी सरकार के खिलाफ विपक्षी पार्टियों में भी केजरीवाल की और अहमियत बढ़ेगी। अगर इतनी बड़ी जीत हासिल होती है तो पूरे देश में यह संदेश जाएगा कि मजबूत बीजेपी के खिलाफ एक क्षेत्रीय दल ने बहुत मजबूती से चुनाव लड़ा और जीत हासिल की। साथ ही, सीएम के रूप में केजरीवाल की पूरे देश में एक अलग पहचान भी बनेगी। बहुमत का आंकड़ा 36 सीटों का है। अगर आप को 36 से 44 सीटें मिल जाती है तो पार्टी दिल्ली में सरकार तो बना सकती है लेकिन सरकार को चलाना एक बड़ी चुनौती रहेगी। विधानसभा में भी तस्वीर दूसरी होगी और विधानसभा में विपक्षी विधायकों का भी सरकार पर काफी दबाव रहेगा। अगर यह नतीजे आते हैं तो यह भी माना जाएगा कि लोगों में आप सरकार को लेकर कुछ ना कुछ नाराजगी भी थी और इसके चलते सीटों की संख्या में कमी आ गई है। अगर आप को बहुमत नहीं मिलता है तो पार्टी के लिए तो मुश्किलें बढ़ेंगी ही, साथ ही पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक केजरीवाल का आगे का राजनीतिक सफर बहुत मुश्किलों भरा हो जाएगा। दिल्ली में पार्टी को बहुमत नहीं मिलने की स्थिति में पार्टी को एकजुट रखना भी केजरीवाल के लिए बड़ी चुनौती होगी, साथ ही दिल्ली के बाहर पार्टी के विस्तार की संभावनाएं भी कमजोर हो सकती हैं।

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