नई दिल्ली: लोहड़ी के मौके पर आम आदमी पार्टी (AAP) ने 'दिल्ली दा पुत्त केजरीवाल' नाम से एक नया कैंपेन सॉन्ग लॉन्च किया। इस गाने के जरिए दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को आगामी विधानसभा चुनावों में फिर से चुनने की अपील की गई है। 1.33 मिनट का यह पंजाबी गाना सोशल मीडिया पर खूब वायरल हो रहा है। गाने में "इस वारी सुन लो, फिर केजरीवाल नू चुन लो" लाइन के जरिए मतदाताओं से भावनात्मक अपील की गई है। गाने में AAP सरकार की उपलब्धियों और नए वादों का उल्लेख है, जिसमें जनता के लिए मुफ्त बिजली, पानी और वरिष्ठ नागरिकों के लिए तीर्थ यात्रा कार्यक्रम जैसी योजनाओं को प्रमुखता से दिखाया गया है।
कैंपेन सॉन्ग में AAP के घोषणापत्र के तहत नई योजनाओं का भी जिक्र है। इनमें महिला सम्मान योजना के तहत हर महिला को हर महीने 2,100 रुपये बैंक खातों में ट्रांसफर करने का वादा शामिल है। इसके अलावा, 60 साल से अधिक उम्र के वरिष्ठ नागरिकों के मेडिकल खर्चों को कवर करने के लिए संजीवनी योजना की भी घोषणा की गई है। यह गाना खास तौर पर दिल्ली के पंजाबी समुदाय को ध्यान में रखते हुए बनाया गया है, जो राजधानी की 25-28 विधानसभा सीटों पर चुनावी नतीजों को प्रभावित करने की ताकत रखते हैं।
दिल्ली के पंजाबी बहुल इलाकों जैसे पंजाबी बाग, तिलक नगर, जनकपुरी, राजौरी गार्डन और हरि नगर में AAP का यह गाना तेजी से प्रचारित किया जा रहा है। सिख मतदाताओं का दबदबा रखने वाले इलाकों में AAP ने अपने प्रचार अभियान को तेज कर दिया है। पार्टी का मानना है कि इस समुदाय का समर्थन चुनावी नतीजों में निर्णायक साबित हो सकता है।
हालांकि, AAP का यह प्रचार अभियान ऐसे समय में सामने आया है जब पार्टी पर गंभीर आरोप लगे हुए हैं। दिल्ली सरकार पर शराब घोटाले और दिल्ली जल बोर्ड में करोड़ों के भ्रष्टाचार के आरोप हैं। इसके साथ ही मुख्यमंत्री आवास पर हुए करोड़ों रुपये के खर्च को लेकर भी सवाल खड़े हुए हैं। इन घोटालों ने AAP की साफ-सुथरी राजनीति की छवि को नुकसान पहुंचाया है।
यह सवाल अब जनता के सामने है कि क्या इन आरोपों को दरकिनार कर वे AAP को एक और मौका देंगे? दिल्ली में मुफ्त सेवाओं और कल्याणकारी योजनाओं का लाभ उठाने वाले बड़े वर्ग के लिए AAP का मॉडल अब भी आकर्षक है। लेकिन घोटालों और प्रशासनिक फैसलों की पारदर्शिता पर उठे सवाल जनता के निर्णय को प्रभावित कर सकते हैं।
आगामी चुनाव में यह देखना दिलचस्प होगा कि दिल्ली के मतदाता इन घोटालों को नजरअंदाज कर AAP के वादों पर भरोसा करेंगे या बदलाव की ओर कदम बढ़ाएंगे। 5 फरवरी को मतदान और 8 फरवरी को परिणाम घोषित होने के साथ ही इस सवाल का जवाब मिल जाएगा। तब तक, दिल्ली की सियासत में यह बहस जारी रहेगी कि क्या केजरीवाल सरकार जनता के भरोसे पर फिर से खरा उतर पाएगी।