नईदिल्ली। दिल्ली में दो युवकों द्वारा सार्वजनिक समारोह के दौरान आत्महत्या करने पर दिल्ली सरकार द्वारा उनके परिजन को मुआवजा देने पर उच्च न्यायालय द्वारा कहा गया कि आत्महत्या करने का चलन बेहद गलत है। दरअसल कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश गीता मित्तल और न्यायमूर्ति सी हरिशंकर की खंडपीठ द्वारा दिल्ली सरकार को सलाह दी गई कि इन युवकों को दिए गए शहीद के दर्जे को वापस ले लिया जाए। आत्महत्या करने वालों को मुआवजा न दिया जाए।
इससे एक गलत परंपरा का जन्म होगा। उच्च न्यायालय ने कहा कि यह कर देने वाले लोगों की राशि है। आत्महत्या करने वालों को रूपयों का वितरण कर एक गलत मिसाल पेश की जा रही है। दूसरे लोग आत्महत्या करने के लिए प्रेरित होंगे। मिली जानकारी के अनुसार वकील अवध कौशिक और पूर्व सैनिक पूरनचंद आर्या ने जो याचिका दयार की उस पर उच्च न्यायालय ने दिल्ली सरकार को 8 अगस्त को अगले समय तक जवाब दाखिल करने के लिए कहा गया।
मिली जानकारी के अनुसार 1 नवंबर को पूर्व सैनिक रामकृष्ण ग्रेवाल ने आत्महत्या कर ली। ग्रेवाल जंतर मंतर पर हुए प्रदर्शन में पहुंचे थे यहां पर पूर्व सैनिक ओआरओपी को लेकर अपनी मांगों को लेकर प्रदर्शन कर रहे थे। जिसके बाद जमकर हंगामा हुआ था। तो दूसरी ओर 22 अप्रैल वर्ष 2015 में आम आदमी पार्टी की रैली में राजस्थान के एक किसान गजेंद्र सिंह ने आत्महत्या कर ली थी। ऐसे में सरकार ने दोनों मामलों में मुआवजा देने का निर्णय लिया था मगर उच्च न्यायालय ने इस पर कहा कि आत्महत्या पर किसी को भी मुआवजा नहीं देना चाहिए।
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