अनुराग ठाकुर के खिलाफ Hate Speech मामले में दिल्ली हाई कोर्ट ने सुरक्षित रखा फैसला, कही ये बात

अनुराग ठाकुर के खिलाफ Hate Speech मामले में दिल्ली हाई कोर्ट ने सुरक्षित रखा फैसला, कही ये बात
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नई दिल्ली: दिल्ली हाई कोर्ट ने वामपंथी नेताओं वृंदा करात और केएम तिवारी दिल्ली दंगों से संबंधित एक याचिका पर फैसला सुरक्षित रख लिया है। बता दें कि ट्रायल कोर्ट ने ‘हेट स्पीच’ के आरोप में केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर और पश्चिमी दिल्ली से सांसद प्रवेश साहिब सिंह वर्मा पर प्राथमिकी दर्ज करने का आदेश देने से इनकार कर दिया था। इसके खिलाफ CPM के दोनों नेता दिल्ली उच्च न्यायालय पहुँचे थे। ये मामला फरवरी 2020 में उत्तर-पूर्वी दिल्ली में हुए हिन्दू विरोधी दंगों से संबंधित है।

याचिका पर सुनवाई करते हुए दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा कि चुनाव के दौरान जिस प्रकार के भाषण दिए जाते हैं, वो सामान्य परिस्थितियों में दिए गए भाषणों से भिन्न होते हैं। कोर्ट ने कहा कि कभी-कभी कुछ बातें माहौल बनाने के लिए की जाती हैं, जहाँ उसका कोई अन्य मकसद नहीं होता। न्यायमूर्ति चंद्रधारी सिंह ने इस याचिका पर सुनवाई की। न्यायमूर्ति सिंह ने कहा कि जब कोई बात मुस्कराहट के साथ कही जाती है, तब उसमें कोई अपराधिकता नहीं होती, किन्तु किसी चीज को यदि आपत्तिजनक तरीके से कहा जाए तो उसमें अपराधिकता हो सकती है। कोर्ट ने पूछा कि उक्त भाषण में कोई ‘सांप्रदायिक इरादा’ कहाँ है?  अदालत ने सवाल किया कि क्या वो चुनावी भाषण था या सामान्य समय में दिया गया बयान? उच्च न्यायालय ने कहा कि सामान्य वक़्त में ऐसे भाषण दिए जाएँ तो इसका मतलब भड़काने का इरादा हुआ।
लोकतंत्र का हवाला देते हुए दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा कि लोगों को बयान देने का अधिकार है।

दरअसल, ये आरोप है कि केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर की रैली में ‘देश के गद्दारों को, गोली मारो सालों को’ के नारे लगे थे। याचिका में आरोप लगाया गया था कि इस रैली में उस समय शाहीन बाग़ में धरने पर बैठी महिलाओं को बलपूर्वक हटाने की तरफ इशारा किया गया था और साथ ही मुस्लिमों को हत्यारा और बलात्कारी दिखा कर उनके खिलाफ घृणा फैलाने का प्रयास किया गया था। इस सम्बन्ध में 29 जनवरी को निर्वाचन आयोग ने अनुराग ठाकुर को ‘कारण बताओ नोटिस’ भी जारी किया था। उच्च न्यायालय ने पूछा कि क्या ये भाषण प्रदर्शनकारियों के स्थल के पास दिया गया? हाईकोर्ट ने कहा कि ‘ये लोग’ का मतलब यहाँ कोई समुदाय विशेष से नहीं है और इसे आप किस रूप में लेंगे? हाईकोर्ट ने सवाल किया कि क्या तब दिल्ली में एक ही समुदाय के लोग प्रदर्शन कर रहे थे? यदि ऐसा है, तो क्या उस प्रदर्शन को सिर्फ एक ही समुदाय का समर्थन हासिल था?

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