7000 करोड़ के घाटे में दिल्ली! पहली बार आमदनी से अधिक हुआ खर्च

7000 करोड़ के घाटे में दिल्ली! पहली बार आमदनी से अधिक हुआ खर्च
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नई दिल्ली: दिल्ली, जो लंबे समय से राजकोषीय अधिशेष (Fiscal Surplus) में थी, अब एक बड़े वित्तीय संकट की कगार पर है। वित्त विभाग ने मुख्यमंत्री आतिशी मार्लेना को सूचित किया है कि 2024-25 के अंत तक दिल्ली का बजट घाटे में जा सकता है, जो पहली बार होगा। ऐसा इसलिए हो सकता है क्योंकि राज्य के खर्चों में तेजी से बढ़ोतरी हो रही है, जबकि आमदनी उस अनुपात में नहीं बढ़ रही।

भाजपा ने इसको लेकर आम आदमी पार्टी (AAP) की सरकार पर निशाना साधा है। उनका कहना है कि AAP सरकार के वित्तीय कुप्रबंधन और असफल नीतियों की वजह से 31 वर्षों में पहली बार दिल्ली घाटे की ओर बढ़ रही है। उन्होंने AAP से दिल्लीवासियों को जवाब देने की मांग की है कि आखिर क्यों राष्ट्रीय राजधानी को इस गंभीर आर्थिक संकट में धकेला गया। दिल्ली की राजकोषीय स्थिति को लेकर राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार (GNCTD) के वित्तीय आंकड़ों से पता चलता है कि राजस्व प्राप्तियां, राजस्व व्यय से अधिक रही हैं। यह स्थिति 2017-18 में ₹4913.25 करोड़ के अधिशेष से शुरू हुई थी, जो 2022-23 में बढ़कर ₹14456.91 करोड़ के अधिशेष तक पहुंच गई। 2023-24 के लिए भी सरकार ₹6462.29 करोड़ के अधिशेष का अनुमान लगा रही है। हालांकि, 2024-25 के लिए वित्तीय पूर्वानुमान चुनौतीपूर्ण हो सकते हैं। प्रारंभिक बजट अनुमान में ₹3231.19 करोड़ के अधिशेष की बात की गई है, लेकिन बजट की मांगों और अतिरिक्त खर्चों के चलते यह ₹1495.48 करोड़ के घाटे में बदल सकता है।

विभिन्न सरकारी विभागों ने अतिरिक्त संसाधनों की आवश्यकता जताई है, जिससे आने वाले साल में बजट संकट और बढ़ सकता है। 2024-2025 के बजट अनुमानों के अनुसार, दिल्ली सरकार की वित्तीय स्थिति एक सतर्क रुख दिखा रही है। राज्य विधान सभा ने करीब 61,000 करोड़ रुपये की अनुमानित प्राप्तियों के साथ बजट को मंजूरी दी है, जो सरकार की परिचालन लागतों, बुनियादी ढांचे के रखरखाव और कल्याणकारी योजनाओं के लिए सब्सिडी देने के लिए आवंटित किया गया है।

मुख्य विभागों की कुछ अतिरिक्त आवश्यकताओं में, न्यायिक वेतन आयोग की सिफारिशों के तहत पेंशन और भत्तों के लिए विधि विभाग के लिए 141 करोड़ रुपये, बिजली विभाग के लिए उपभोक्ता सब्सिडी के लिए 512 करोड़ रुपये, और परिवहन विभाग को इलेक्ट्रिक बसों के लिए 941 करोड़ रुपये शामिल हैं। इसके अलावा, सिंचाई और बाढ़ नियंत्रण विभाग को डी-सिल्टिंग और जीर्णोद्धार कार्यों के लिए 447 करोड़ रुपये और दिल्ली मेट्रो रेल कॉरपोरेशन (DMRC) के लिए 3,271 करोड़ रुपये की जरूरत है। स्वास्थ्य विभाग के तहत यूनिवर्सिटी कॉलेज ऑफ मेडिकल साइंस के अधिग्रहण के लिए 250 करोड़ रुपये की भी आवश्यकता है। इन सभी ज़रूरतों को मिलाकर कुल 7,362 करोड़ रुपये का अतिरिक्त खर्च हो सकता है। यानी दिल्ली सरकार 7362 करोड़ के घाटे में चली जाएगी। 

बता दें कि, दिल्ली की वित्तीय स्थिति शीला दीक्षित के शासनकाल में मुनाफे में रही थी। 2013 तक, जब शीला दीक्षित मुख्यमंत्री थीं, तब भी शहर की वित्तीय स्थिति मजबूत थी और अधिशेष बना हुआ था। लेकिन आम आदमी पार्टी के 11 वर्षों के शासनकाल में, अब राष्ट्रीय राजधानी 7000 करोड़ रुपये के संभावित घाटे में जा रही है। यह बदलाव एक गंभीर वित्तीय संकट का संकेत है जो AAP की नीतियों और निर्णयों पर सवाल खड़े कर रहा है।

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