नई दिल्ली: दिल्ली के धौला कुआं रिंग रोड के समीप स्पेशल सेल की टीम की ISIS के आतंकी से मुठभेड़ होने लगी. आतंकी को पकड़ लिया गया है, और उसके पास से 2 IED और हथियार बरामद किए गए है. पकड़े गए आतंकी का नाम अबु यूसुफ कहा जा रहा है. उत्तरप्रदेश के बलरामपुर का रहने वाले अबु यूसुफ के निशाने पर कोई अहम् शख्स था. लेकिन उसे पकड़ लिया गया. जिसके उपरांत NSG की टीम ने उससे जब्त IED को डिफ्यूज किया जा चुका है. जंहा इस बात का पता चला है कि IED यानी इसे बनाने के लिए पारंपरिक सैन्य तरीके या फिर कुछ नए तकनीक अपनाएं जाने वाले है. यह मोबाइल फोन में बन सकता है, रेडियो, साइकिल, फुटबॉल यानी आप जिस वस्तु को सोच रहे हैं, उसमें IED कहा जा सकता है. हर IED को डिफ्यूज करने का अलग ढंग होता है.
देश में बम डिस्पोजल एंड डिटेक्शन स्क्वाड को 24 तरीकों के बमों को डिफ्यूज करना बताया जाता है. इस स्क्वाड के कुछ अधिकारी बाहर देशों में इसकी ट्रेनिंग पूरी करके आए और वे फिर देश में बम स्क्वाड के अन्य जवानों को जिसकी ट्रेनिंग दे चुके हैं. NSG भी उसमें मौजूद है. बम डिफ्यूज करने के बीच इस बात पर अधिक ध्यान दिया जाता है कि डिफ्यूज करने के उपरांत इस बात के सुबूत भी मिल सकें कि बम किस टाइप का है. इसे कहां बनाया गया है. इस काम के लिए स्पेशल चार्ज तकनीक का उपयोग किया जाता है. इसकी वजह से बम डिफ्यूज होने के उपरांत भी उसके अवशेष बचे हुए है.
IED विस्फोटकों को डिफ्यूज करने के लिए पूरी विश्व में रेंडर सेफ प्रोसीजर (RSPs) बनाए जा चुके हैं. IED के आकार, प्रकार, स्थान, वस्तु के आधार पर उसको डिफ्यूज करने का प्रोसीजर फॉलो कर रहे है. इस तरह के विस्फोटकों को 2 तरह की श्रेणियों में बांटा जा रहा है. हाई ऑर्डर डेटोनेशन और लो ऑर्डर डेटोनेशन. हाई ऑर्डर यानी मिलिट्री ग्रेड के विस्फोटक जिन्हें डिफ्यूज करने के लिए अत्यधिक कुशलता, ट्रेनिंग और धैर्य की आवश्यकता होती है. लो ऑर्डर यानी सामान्य तौर पर बनाई जाने वाले IED एक्सप्लोसिव या अन्य तरह के बम. IED बम को डिफ्यूज करते वक़्त सबसे पहले इस बात का ध्यान देना होता है कि जिसके अंदर किसी तरह रासायनिक, जैविक, रेडियोलॉजिकल या एटॉमिक विस्फोटक या पदार्थ तो नहीं है. क्योंकि बम को खोलते ही ये बाहर निकल सकते है.
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