संसद में अगले हफ्ते पेश होगा दिल्ली सेवा विधेयक, AAP के साथ पूरा विपक्ष, क्या सरकार जुटा पाएगी समर्थन ?

संसद में अगले हफ्ते पेश होगा दिल्ली सेवा विधेयक, AAP के साथ पूरा विपक्ष, क्या सरकार जुटा पाएगी समर्थन ?
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नई दिल्ली: विवादास्पद दिल्ली सेवा विधेयक अगले सप्ताह संसद में पेश किया जाएगा।  केंद्रीय मंत्री वी मुरलीधरन ने आज यानी शुक्रवार (28 जुलाई) को राज्यसभा को इस संबंध में सूचित किया है। यह घटनाक्रम सत्तारूढ़ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) और विपक्षी I.N.D.I.A गठबंधन के बीच एक नाटकीय टकराव के लिए मंच तैयार करता है, क्योंकि इसके 26 घटकों में से एक, आम आदमी पार्टी (AAP) सीधे तौर पर प्रभावित होगी, अगर यह कानून संसद में पारित हो जाता है।

बता दें कि, विपक्षी दल बार-बार इस विधेयक को भारत के संघीय ढांचे पर 'हमला' बता रहे हैं। बता दें कि, राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार (संशोधन) विधेयक, 2023, या, बस, सेवा विधेयक, एक अध्यादेश को प्रतिस्थापित करने और देश की राजधानी में नौकरशाही पर केंद्र के नियंत्रण को बहाल करने का प्रयास करता है, जो एक शहर और केंद्र शासित प्रदेश (UT) दोनों है। 

क्या है दिल्ली का अध्यादेश विवाद ?

बता दें कि, 11 मई के आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने ट्रांसफर-पोस्टिंग सहित सेवा मामलों से जुड़े सभी कामकाज पर दिल्ली सरकार का कंट्रोल बताया था। वहीं, जमीन, पुलिस, और पब्लिक ऑर्डर के अलावा सभी विभागों के अफसरों पर केंद्र सरकार को कंट्रोल दिया गया था। ये पॉवर मिलते ही, केजरीवाल सरकार ने दिल्ली सचिवालय में स्पेशल सेक्रेट्री विजिलेंस के आधिकारिक चैंबर 403 और 404 को सील करने का फरमान सुना दिया और    विजिलेंस अधिकारी राजशेखर को उनके पद से हटा दिया था। लेकिन, केंद्र सरकार अध्यादेश ले आई और फिर राजशेखर को अपना पद वापस मिल गया। इसके बाद पता चला कि, दिल्ली शराब घोटाला और सीएम केजरीवाल के बंगले पर खर्च हुए करोड़ों रुपए की जांच राजशेखर ही कर रहे थे।

राजशेखर को पद से हटाए जाने के बाद उनके दफ्तर में रखी फाइलों से छेड़छाड़ किए जाने की बात भी सामने आई थी। एक वीडियो वायरल हुआ था, जिसमे राजशेखर के दफ्तर में आधी रात को 2-3 लोग फाइलें खंगालते हुए देखे गए थे।  ऐसे में कांग्रेस नेता संदीप दीक्षित और अजय माकन द्वारा कहा जा रहा है कि, केजरीवाल इस अध्यादेश का विरोध दिल्ली की जनता के लिए नहीं, बल्कि खुद को बचाने के लिए कर रहे हैं। अजय माकन का तो यहाँ तक कहना है कि, अध्यादेश पर केजरीवाल का साथ देना यानी नेहरू, आंबेडकर, सरदार पटेल जैसे लोगों के विचारों का विरोध करना है, जिन्होंने कहा था कि, दिल्ली की शक्तियां केंद्र के हाथों में ही होनी चाहिए। माकन तर्क देते हैं कि, कांग्रेस सरकार के समय मुख्यमंत्री शीला दीक्षित को भी वह शक्तियां नहीं मिली थी, जो केजरीवाल मांग रहे हैं। साथ ही इन दोनों नेताओं ने कांग्रेस से केजरीवाल का साथ न देने की अपील की है। हालाँकि, भाजपा के खिलाफ विपक्षी एकता बनाए रखने और 2024 के चुनाव में AAP का साथ लेने के लिए कांग्रेस हाईकमान ने AAP की मांग स्वीकार कर ली है और अब कांग्रेस नेहरू-आंबेडकर, पटेल आदि के विचारों के खिलाफ जाकर AAP का साथ देगी। 

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