बंटवारे का पहला बीज बोन वाले अल्लामा इक़बाल के बारे में अब नहीं पढ़ाएगी दिल्ली यूनिवर्सिटी, नए सिलेबस में शामिल होंगे राष्ट्रभक्तों के पाठ

बंटवारे का पहला बीज बोन वाले अल्लामा इक़बाल के बारे में अब नहीं पढ़ाएगी दिल्ली यूनिवर्सिटी, नए सिलेबस में शामिल होंगे राष्ट्रभक्तों के पाठ
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नई दिल्ली: मोहम्मद इकबाल, जिन्हें अल्लामा इकबाल के नाम से जाना जाता है। एक समय में उन्होंने प्रसिद्ध गीत 'सारे जहाँ से अच्छा, हिंदोस्ताँ हमारा' लिखा था, लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि, इन्ही अल्लामा इकबाल ने देश के विभाजन का बीज भी बोया था। इकबाल न सिर्फ मुस्लिम लीग के प्रमुख समर्थक थे, बल्कि मोहम्मद अली जिन्ना के भी सलाहकार थे। उन्होंने ही मजहबी आधार पर मुस्लिमों के लिए अलग देश की माँग सबसे पहले उठाई थी। हालांकि, इसके बावजूद उन्हें अब तक भारत में सम्मान मिलता रहा है।

हालांकि, दिल्ली विश्वविद्यालय (DU) ने अब यह निर्णय लिया है कि मोहम्मद इकबाल से जुड़े चैप्टर्स को उनके सिलेबस से हटा दिया जाएगा। DU के कुलपति योगेश सिंह ने ऐलान किया है कि इकबाल भारत के विभाजन की शुरुआत करने वालों में से एक थे और उन्हें अब DU में पढ़ाया नहीं जाएगा। उन्होंने यह भी बताया कि इकबाल ने 1904 में 'सारे जहाँ से अच्छा' लिखा था, लेकिन उन्होंने इसे कभी भी खुद स्वीकार नहीं किया। विभाजन विभीषिका दिवस के अवसर पर एक कार्यक्रम में बोलते हुए, कुलपति सिंह ने कहा कि DU देश की एकता और अखंडता से समझौता नहीं करेगा और इकबाल की जगह महात्मा गांधी, भीमराव अंबेडकर, और अन्य राष्ट्रवादी नेताओं के बारे में पढ़ाया जाएगा। इसलिए अब देश के विभाजन के लिए जिम्मेदार इकबाल के बारे में नहीं पढ़ाया जाएगा। 

बता दें कि इकबाल की रचनाओं में इस्लामिक कट्टरपंथ को बढ़ावा देना साफ़ नज़र आता है। तराना ए मिल्ली में इक़बाल ने लिखा है कि “काबा-पहला घर, जिसे बुतपूजकों से मुक्त करा लिया है। हम इसके संरक्षक हैं और यह हमारा रक्षक है।” इकबाल के लाहौर ने निकल कर ब्रिटेन जाने के बीच वर्ष 1904-1910 के बीच जबरदस्त वैचारिक बदलाव आए थे। वो इंग्लैंड में जाकर कट्टरपंथी बन चुके थे और पाकिस्तान के निर्माण की वैचारिक बीज भी उन्होंने ही बोया था। इक़बाल ने 29 दिसंबर 1930 को मुस्लिम लीग के अधिवेशन में अध्यक्षीय भाषण दिया था, जिसमे उन्होंने स्पष्ट कह था कि वो मुसलमानों के लिए अलग देश की माँग करते हैं। इक़बाल ने कहा था कि हिंदुस्तान में इस्लाम की रक्षा नहीं की जा सकती और न ही मुसलमानों की, ऐसे में अलग देश ही एकमात्र उपाय है। बता दें कि, DU ने पहले ही 2023 में एक समिति द्वारा बीए सेकंड ईयर के सिलेबस से इकबाल से जुड़ी सामग्री को हटाने की सिफारिश की थी, जिसे अब पूरी तरह से लागू कर दिया गया है।

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