नई दिल्ली: इस बार के दिल्ली विधानसभा चुनाव को ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) के चीफ असदुद्दीन ओवैसी की एंट्री ने बेहद दिलचस्प बना दिया है। मुगल काल से ही दिल्ली में मुस्लिमों की भूमिका अहम रही है, ब्रिटिश शासन में भी यहाँ अच्छी खासी तादाद में मुसलमान रहे। हालाँकि, भारत के बंटवारे के बाद एक बड़ी मुस्लिम आबादी पाकिस्तान चली गई, लेकिन आज 7 दशकों के बाद भी दिल्ली में कई ऐसी विधानसभा सीटें हैं, जिनका रुख मुस्लिम वोटर अपने दम पर पलट सकते हैं।
इसी रणनीति के तहत असदुद्दीन ओवैसी ने दिल्ली में किस्मत आज़माने का फैसला लिया है, इससे पहले ओवैसी बिहार की मुस्लिम बहुल सीटों पर जीत दर्ज कर चुके हैं, महाराष्ट्र में भी उनके उम्मीदवार जीते हैं। ये उसी वोट बैंक पर नज़र गड़ाए बैठी AAP और कांग्रेस के लिए खतरे की घंटी है, क्योंकि जिन मुद्दों को उठाकर AAP, कांग्रेस या अन्य कथित सेक्युलर पार्टियां खुद को ज्यादा बड़ा मुस्लिम शुभचिंतक दिखाने की कोशिश करती थीं, वो मुद्दे ओवैसी ज्यादा जोर से उठाने लगे हैं। हाल ही में उन्होंने, दिल्ली के मुस्लिम बहुल इलाकों के विकास को लेकर केजरीवाल सरकार को जमकर खरी खोटी सुनाई है। हालाँकि, ये सवाल AAP से पहले दिल्ली पर 15 साल शासन कर चुकी कांग्रेस के लिए भी है? ऐसा तो नहीं है कि, कांग्रेस ने मुस्लिम इलाकों में सड़कें बनवाई थी और केजरीवाल सरकार ने उखड़वा दीं, वहां जो नालियां थीं, उन्हें बंद करवा दिया? अगर कुछ विकास हुआ होगा, तो वो दिखेगा जरूर, चाहे पहले की सरकार ने किया हो, या अब की सरकार ने।
बहरहाल, ओवैसी दिल्ली में मुसलमानों के साथ किए जा रहे भेदभाव को लेकर AAP सरकार पर हमलवार हैं और उन्होंने सीधे दावा किया है कि, मुसलमानों के इलाकों में पूरी दिल्ली का 'कचरा' फेंका जा रहा है। बकौल ओवैसी, "दिल्ली के जिन विधानसभा क्षेत्रों में मुसलमान रहते हैं, दिल्ली का कचरा उन्हीं इलाकों में फेंका जाता है। मुस्लिम बहुल इलाकों में कोई क्लीनिक और स्कूल नहीं बनाए गए हैं। उन इलाकों में कोई विकास नहीं हुआ है।"
ओवैसी ने सबूत होने का दावा करते हुए आगे कहा कि, "मैंने दो से अधिक RTI आवेदन दायर किए हैं, जिनमें मैं, एक मुसलमान, सरकार से पूछ रहा हूं कि प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत दिए जा रहे घरों में से कितने घर मुसलमानों को दिए जा रहे हैं? सरकारी योजना में मुसलमानों का हिस्सा क्या है? चाहे वह आप सरकार हो या केंद्र सरकार, सभी घोषणाएं केवल चुनाव से पहले की जा रही हैं।" हालाँकि, ओवैसी अगर ये पूछ रहे हैं कि PM आवास में मुसलमानों का हिस्सा कितना है? तो क्या ये नहीं पुछा जाना चाहिए कि टैक्स भरने में मुसलमानों का हिस्सा कितना है? आतंकवाद में मुसलमानों का हिस्सा कितना है? अपराधों में मुसलमानों का हिस्सा कितना है? सेना-पुलिस-धार्मिक जुलुस पर पत्थरबाज़ी में मुसलमानों का हिस्सा कितना है? लेकिन ऐसा नहीं पुछा जा सकता, संविधान के अनुसार, ये धार्मिक भेदभाव हो जाएगा, इसलिए हम ऐसा कुछ नहीं पूछेंगे। ओवैसी जी बैरिस्टर हैं, वे कुछ भी पूछ सकते हैं, क्योंकि उन्हें कानून का ज्ञान है।
हालाँकि, सरकार कई बार कह चुकी है कि, सरकारी योजनाओं का लाभ देने में किसी की भी जातिi-धर्म लिंग आदि पर गौर नहीं किया जाता, लेकिन ओवैसी जी के मन में सवाल हैं, तो उन्हें इसका जवाब मिलना चाहिए, सरकार को पूरा हिसाब देना चाहिए कि सरकारी योजनाओं में मुस्लिमों का कितना हिस्सा है। इसके बाद AIMIM चीफ ने एक देश एक चुनाव के विरोध में भी अपना पक्ष रखा। उन्होंने कहा कि, ये मतदाताओं के "हित" में नहीं है और संविधान के खिलाफ है। गौरतलब है कि चुनाव आयोग ने अभी तक चुनावों की तारीखों की घोषणा नहीं की है।