हिचकोलों के बीच विकास की रफ्तार का सुहावना सफर

हिचकोलों के बीच विकास की रफ्तार का सुहावना सफर
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लगता है नेताओं के पास मसलों, मुद्दों और दावों का अकाल पड़ गया है। हर कोई बीफ को राजनीति की गर्माहट में भुनने चला है तो कोई असहिष्णुता की बात कर कहने लगा है की अब तो हमारी बारी आ जाए बस! सत्तापक्ष विकास का छलावा देकर अपने स्वार्थ साध रहा है तो दूसरी ओर विपक्ष विरोध की अंधेरगर्दी में लगा है। विपक्ष सत्तापक्ष के खिलाफ जितने मुद्दे लाया वह सब हवा हो गए।

दरअसल विपक्ष अपनी सही भूमिका निभा नहीं पाया। किसी को भी जनता की असल समस्याओं जैसे बिजली, सड़क, पानी से कोई सरोकार नहीं रहा। जी हां, भारत में आज भी सड़क एक बड़ा मसला है। दीपावली पर लोग बड़े जतन से उड़नखटोले जैसी लक्ज़रीयस कार ले लेते हैं मगर जब भारत की सड़कों पर वे निकलते हैं तो उन्हें पता ही नहीं चलता कि उन्होंने कार कब खरीदी थी।

पूरी कार धूल में सनी होती है। सड़कों पर कारें हिचकोले तो ऐसे खाती है कि लोग दोबारा इन रास्तों से आने की हिमाकत ही नहीं करते। कुछ ऐसी ही हिमाकत हमने भी कर ली। एक दिन की फुर्सत और उस पर कुछ लंबी सैर का मन था। सो वाहन में सवार होकर निकल पड़े, नेशनल हाईवे नंबर 3 पर। मध्यप्रदेश के क्षेत्र में देवास होते हुए आगर का यह सफर बहुत यादगार रहा। सफर इतना सुहावना रहा कि गाड़ी कब हिचकोले ले रही है और कब सरपट दौड़ रही है पता ही नहीं चला। 

देवास के क्षेत्र में इस सड़क पर सिया कस्बा लगता है। इसे इंडस्ट्रियल एरिया के तौर पर तेजी से विकसित किया जा रहा है। शायद इस क्षेत्र में उद्योगपतियों को लाए जाने से प्रदेश के विकास की गति अच्छी हो जाए। इस क्षेत्र में NH 3 का हिस्सा आता है मगर यहां पर गड्ढे नहीं पूरे डबरे बने हुए हैं। सड़क के दांई ओर गड्ढे से बचे कि बांई ओर गड्ढा आ जाता है।

अब इन हिचकोलों में गाड़ी ऐसी उछलती है कि वाहन चालक का पैर ब्रेक पर है या एक्सीलेटर पर यह मालूम ही नहीं पड़ता। हां, स्टीयरिंग हाथों पर पड़ने वाले बल से खुद ही संतुलित हो जाता है। यहां से गुजरने वाले लोडेड वाहन सड़क पर इस तरह हिचकोले खाते हैं जैसे मध्यप्रदेश के विकास की गाथा गाते हुए चल रहे हों और उन्हें मोदी के विकासवाद की स्वर लहरी मिल गई हो।

बड़े बड़े गड्ढों से हिचकोले खाते हुए संकरी सी सड़क पर भारी -’ भारी वाहन जैसे तैसे आगे बढ़ते हैं तो रेलवे क्राॅसिंग के जाम में वाहन चालकों को दम लेने का मौका मिल जाता है। वाहनों के लंबे जाम और ट्रेनों की आवाजाही के देरी तक इंतज़ार में सवारियां और वाहन चालक कुछ सुस्ता लेते हैं कुछ तो इंडियन वाॅश रूम का आनंद लेकर खेतों के आसपास मुक्त होने लगते हैं। उनके हाव - भाव देखकर ऐसा लगता है जैसे चलिए अब पीड़ा से प्राण छूटे।

इस रास्ते पर आगे बढ़ने पर कई तरह के रंग देखने को मिलते हैं। आसपास मौजूद खेतों और गांवों से भारत की संपन्न ग्राम सभ्यता का पता चलता है तो गांव की सुकूनभरी हवा आपकी आंखों में नींद भर देती है। हां, मगर हिचकोलों पर हिलती लक्ज़री कार का आनंद आपको विश्राम करने नहीं देता। इस रास्ते पर वाहन इस कदर धूल उड़ाते हैं जैसे एक दूसरे से धूल उड़ाने की प्रतिस्पर्धा चल रही हो। यदि आप सड़क के आसपास कुछ घंटे ठहर गए तो शायत आईने में आपको अपनी शक्ल भी पहचानना मुश्किल हो जाएगा।

हां इस रास्ते में आने वाले टी स्टाॅल और जलपानगृह जरूर आपकी मदद कर सकते हैं। यहां बतियाने वाले लोगों को जानकर आप का दिल खुश हो जाएगा। आपको लगेगा जैसे इनसे आपका अपना सा लगाव है। आप भी अचरज में पड़ जाऐंगे कि आपसे मिलने वाला हिंदू है या मुसलमान है। आखिर यही तो इस प्रदेश की पहचान है। हां मगर अगली बार इस रास्ते से आऐं तो सड़क पर लगने वाले हिचकोलों के लिए तैयार रहिये गा। हालांकि कुछ हिस्सों में यह सड़क काफी शानदार हो जाती है लेकिन देवास से आगर- मालवा की सीमा तक इस सड़क पर वाहन विकास की गाथा गाते हुए चलते हैं। 

'लव गडकरी'

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