नई दिल्ली: देश के उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने जनसांख्यिकीय परिवर्तनों को लेकर चिंता जताई है। उन्होंने मंगलवार (15 अक्टूबर 2024) को कहा कि देश के कुछ इलाकों में जनसांख्यिकीय परिवर्तन हो चुके हैं तथा अब वहां राजनीतिक स्थिति स्थिर हो गई है। उनके अनुसार, इन स्थानों पर चुनाव एवं लोकतंत्र का कोई अर्थ नहीं रह गया है, क्योंकि परिणाम पहले से तय हैं। राजस्थान की राजधानी जयपुर में चार्टर्ड अकाउंटेंट्स ऑफ इंडिया के एक सम्मेलन को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि जनसांख्यिकीय परिवर्तन वैश्विक स्तर पर एक चुनौती बन रहा है। उन्होंने कहा कि देश के कुछ क्षेत्रों में जनसांख्यिकी परिवर्तन अत्यधिक हो गया है, जिससे चुनाव का कोई मतलब नहीं रह जाता। उन्होंने कहा- “यहां कौन चुनेगा, यह तो तय बात हो गई है।"
धनखड़ ने बताया कि ऐसे क्षेत्रों की संख्या बढ़ रही है, तथा इसे देशवासियों को गंभीरता से लेना चाहिए। उन्होंने कहा, “हम अपनी आने वाली पीढ़ियों के प्रति ऋणी हैं। यह हमारी सभ्यता का सार, इसकी महानता और आध्यात्मिकता है, जिसे हमें अपनी आँखों के सामने नष्ट नहीं होने देना चाहिए।” उपराष्ट्रपति ने हिंदू बहुलता की बात करते हुए कहा, “हम बहुसंख्यक के रूप में सहिष्णु और एक सुखदायक पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण करते हैं।” उन्होंने मुस्लिम जनसंख्या की वृद्धि की तरफ इशारा करते हुए कहा, “दूसरी तरह का बहुसंख्यक क्रूर और लापरवाह है, जो अन्य मूल्यों को रौंदने में विश्वास करता है। यह चिंताजनक है।”
उन्होंने कहा कि हमें एक संगठित समाज का निर्माण करना होगा, जो जाति, पंथ, रंग, संस्कृति, विश्वास और खान-पान के आधार पर विभाजित न हो। हमारी साझा संस्कृति पर कुठाराघात हो रहा है तथा इसे कमजोरी बताने की कोशिश हो रही है। उपराष्ट्रपति ने कहा, “इसके तहत देश को ध्वस्त करने की योजनाएं बनी हुई हैं। ऐसी ताकतों के खिलाफ वैचारिक तथा मानसिक प्रतिघात होना चाहिए। हमें संकीर्ण विभाजनों को पीछे छोड़ना होगा। राष्ट्रवादी दृष्टिकोण वाले नागरिक को विविधता अपनाने में कोई कठिनाई नहीं होगी।” आने वाले खतरे को लेकर आगाह करते हुए धनखड़ ने कहा, “भारत की सभ्यतागत प्रकृति को विभाजनकारी खतरों से बचाने के लिए तत्काल कार्रवाई की जरुरत है। स्थिर और समृद्ध राष्ट्र सुनिश्चित करने के लिए सामाजिक एकता को संरक्षित किया जाना चाहिए।”
धनखड़ ने बताया कि जैविक, प्राकृतिक और जनसांख्यिकीय परिवर्तन हमेशा परेशान करने वाले नहीं होते, किन्तु किसी लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए रणनीतिक तरीके से किया गया जनसांख्यिकीय परिवर्तन भयावह हो सकता है। यदि इससे व्यवस्थित तरीके से नहीं निपटा गया, तो यह अस्तित्व के लिए चुनौती बन सकता है। उन्होंने कहा, “दुनिया में ऐसा पहले भी हो चुका है।” उन्होंने जनसांख्यिकीय परिवर्तन के परिणामों को परमाणु बम के प्रभाव से भी गंभीर बताया। उन्होंने चेतावनी दी कि इस जनसांख्यिकीय विकार और भूकंप के कारण कई देशों ने अपनी पहचान खो दी है। भारत के लोगों को आगाह करते हुए उन्होंने कहा कि कुछ राजनेताओं को अख़बार की सुर्खियों के लिए राष्ट्रीय हित का त्याग करने में कोई परहेज़ नहीं होता।
ध्यान देने वाली बात है कि जनसांख्यिकीय परिवर्तन भारत के लिए एक बड़ा खतरा बन चुका है। देशभर के शहरों एवं इलाकों में इस प्रकार के परिवर्तन देखने को मिल रहे हैं, जिसकी वजह से कई इलाकों में हिंदुओं को पलायन करने के लिए भी मजबूर होना पड़ा है। झारखंड, पश्चिम बंगाल, बिहार तथा उत्तर प्रदेश के कई इलाके इससे गंभीर रूप से प्रभावित हैं। इसके परिणाम अब स्पष्ट रूप से देखने को मिल रहे हैं।
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