देशभर में मानसूनी बारिश के चलते आई बाढ़ और जलजमाव की स्थितियों ने एक बार फिर आपदा प्रबंधन की पोल खोलकर रख दी है। भारत में आपदा प्रबंधन केवल एक शब्द बनकर रह गया है। आपदा होने पर सेना को काम में ले लिया जाता है। यदि अधिक गंभीर आपदा हो तो एनडीआरएफ की सेवा ले ली जाती है। दरअसल एनडीआरएफ केंद्रीय स्तर पर गठित एक ऐसा दल है, जो किसी बड़ी आपदा का सामना करने में प्रभावी होता है। मगर अन्य स्तरों पर तो आपदा प्रबंधन के कोई इंतजाम नहीं हैं।
स्थानीय और प्रादेशिक स्तरों पर यदि भीषण बाढ़ की स्थिति निर्मित हो जाए तो फिर राहत के इंतजाम करना काफी मुश्किल हो जाता है। इन स्तरों पर न तो साधन हैं और न ही संसाधन। यहां मैन पाॅवर की कमी भी काफी खलती है। अत्याधुनिक उपकरण तो न के बराबर हैं। यदि इन उपकरणों की आश्यकता लगती है तो राहत कार्य में काफी देर तक इंत़ज़ार करना होता है। ऐसे में राहत कार्य का समय प्रभावित होता है।
केवल बारिश और बाढ़ ही नहीं भूकंप, आगजनी आदि ऐसे कई मामले हैं जिनमें आपदा प्रबंधन काफी कमजोर साबित होता है। आपदा प्रबंधन के इंतजाम भी पर्याप्त नहीं होते और न ही आपदा का प्रबंधन किया जाता है। दरअसल बारिश के मौसम में ही निचले क्षेत्र में पानी बढ़ने लगता है। मगर इसके बाद भी निचले क्षेत्र से लोगों को सुरक्षित स्थानों पर नहीं पहुंचाया जाता ऐसे में लोगों का जनजीवन प्रभावित होता है।
हालांकि सेना और बचाव दल अपनी ओर से पूरा प्रयास करते हैं मगर राहत समय पर न मिलने और सेना की मजबूरियां होने के कारण कुछ लोग आपदा प्रभावित हो जाते हैं। ऐेसे में स्थानीय स्तर पर उन क्षेत्रों में पहले से ही प्रयास किए जाने चाहिए जहां प्रतिवर्ष ही बाढ़ और अन्य आपदाओं से जीवन संकट में होता है।
'लव गडकरी'