आज देश भर में देव दिवाली का पर्व उत्साह और उल्लास के साथ मनाया जा रहा है। जी दरअसल यह पर्व रोशनी के त्योहार दीपावली के 15 दिनों के बाद आता है। यह पर्व देश के विभिन्न राज्यों, विशेष रूप से वाराणसी में बड़े हर्षोउल्लास के साथ मनाया जाता है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन शिव जी ने त्रिपुरासुर नामक राक्षस का वध किया था और विष्णु जी ने मत्स्य अवतार भी लिया था। इस वजह से इसे देव दिवाली कहा जाता हैं। जी दरअसल आज के दिन पवित्र नदियों में स्नान करने और दीपदान करने का विशेष महत्व है। वहीं पंचांग को माने तो इस साल देव दिवाली 18 नवंबर को मनाई जा रही हालाँकि कार्तिक पूर्णिमा का स्नान और इससे जुड़े सभी पूजा-पाठ 19 नवंबर को किए जाएंगे।
आप सभी को बता दें कि देव दिवाली के दिन पवित्र नदी के जल से स्नान करके दीपदान करना चाहिए। यह दीपदान नदी के किनारे किया जाता है। आज के दिन वाराणसी में गंगा किनारे बड़े स्तर पर दीपदान किया जाता है और इसको वाराणसी में देव दीपावली कहा जाता है।
क्यों कहते हैं देव दिवाली- ऐसा माना जाता है कि कार्तिक मास की पूर्णिमा के दिन भगवान शिव ने त्रिपुरासुर राक्षस का वध किया था। त्रिपुरासुर के वध की खुशी में देवताओं ने काशी में अनेकों दीए जलाए। इसी वजह से आज भी हर साल कार्तिक मास की पूर्णिमा पर काशी में दिवाली मनाई जाती है। यह दीवाली देवों ने मनाई थी, इसीलिए इसे देव दिवाली कहा जाता है।
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