धनराज पिल्लै। एक ऐसा नाम जिसने हॉकी की परिभाषा को ही बदलकर रख दिया। धनराज ने हॉकी के मैदान पर ऐसा जादू चलाया कि ऐसा जादू फिर कभी देखने को नहीं मिला। एक मध्यमवर्गीय परिवार में उनका जन्म 16 जुलाई 1968 को पुणे के करीब खिड़की नामक स्थान पर हुआ। उनके माता-पिता की वे चौथी संतान है। उनके माता-पिता ने किसी चमत्कार को ध्यान में रखते हुए उनका नाम धनराज रख दिया और वे जब बड़े हुए तो उन्होंने अपने नाम को सही भी साबित कर दिया।
धनराज जब बड़े हो रहे थे, उस समय हिन्दुस्तान में हॉकी अधिक लोकप्रिय खेल था। हॉकी का शौक उन्हें बचपन से ही था और आर्थिक तंगी के कारण वे टूटे हुए डंडे से ही हॉकी खेला करते थे। धनराज को हॉकी का सचिन तेंदुलकर कहा जाता है। साल 1989 में धनराज ने लगभग 21 साल की उम्र में हॉकी में पदार्पण किया। उनका हॉकी करियर करीब 15 सालों का रहा। धनराज ने विश्व कप , ओलम्पिक, एशिया कप और एशो-अफ्रीका हॉकी में अपने हुनर से खूब वाहवाही लूटी।
नई दिल्ली में ऑलवेन एसिया कप से अंतर्राष्ट्रीय हॉकी की शुरुआत करने वाले धनराज के गोल का रिकॉर्ड भारतीय हॉकी फेडरेशन ने कभी नहीं रखा। हालांकि फिर भी धनराज मानते हैं कि 339 अंतराष्ट्रीय मैचों में उन्होंने कुल 170 गोल किए हैं। उनके नाम 4 ओलिम्पिक में खेलने का रिकार्ड भी दर्ज है। वे एकमात्र ऐसे हॉकी प्लेयर है जिन्होंने 1992, 1996, 2000 और 2004 के ओलंपिक में हिस्सा लिया था। भारतीय हॉकी टीम ने 1998 में और 2003 में एशियन गेम्स और एशिया कप धनराज पिल्लै की कप्तानी में ही जीता था। पुरष्कारों की बात की जाए तो उन्हें उनके शानदार खेल के लिए साल 1999-2000 में देश के सबसे ऊँचे खेल पुरष्कार राजीव गांधी खेल रत्न से नवाजा गया। साथ ही साल 2000 में धनराज को नागरिक सम्मान पद्म श्री से भी नवाजा गया था।
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