क्या CJI ने गणेश पूजन में PM को बुलाकर गलती की? अबतक दे रहे सफाई..

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नई दिल्ली: मुख्य न्यायाधीश (CJI) डी वाई चंद्रचूड़ ने हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ गणेश पूजा के दौरान हुई मुलाकात पर उठाए गए विवादों को संबोधित करते हुए स्पष्ट किया कि यह मुलाकात केवल एक सामान्य परंपरा का हिस्सा थी। उन्होंने कहा कि इस तरह की मुलाकातें न्यायपालिका और कार्यपालिका के बीच न्यायिक निर्णयों को प्रभावित करने के लिए नहीं होतीं, बल्कि इन्फ्रास्ट्रक्चर जैसे मुद्दों पर चर्चा के लिए होती हैं। उन्होंने कहा कि देश में एक परिपक्व लोकतांत्रिक प्रणाली है, जिसमें न्यायपालिका की स्वतंत्रता को संरक्षित रखने की पूरी समझ है। 

वास्तव में, महाराष्ट्र में गणेश उत्सव के दौरान एक-दूसरे के घर आकर पूजा में शामिल होना एक पारंपरिक प्रथा है, जो कि सामाजिक सौहार्द का प्रतीक है। मुख्य न्यायाधीश के घर पर गणेश पूजा के अवसर पर प्रधानमंत्री के अलावा अन्य अधिकारियों और वकीलों को भी आमंत्रित किया गया था, लेकिन मुद्दा केवल प्रधानमंत्री की उपस्थिति को लेकर उठाया गया। सीजेआई ने इस संदर्भ में यह भी कहा कि राज्यों में भी यह प्रथा है कि जब किसी नए मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति होती है तो राज्य के मुख्यमंत्री और न्यायाधीशों के बीच बैठकें होती हैं। ये बैठकें ज्यूडिशियल इन्फ्रास्ट्रक्चर और प्रशासनिक मुद्दों पर चर्चा के लिए होती हैं, न कि किसी न्यायिक मामले पर। उन्होंने आगे कहा कि इस प्रकार की मुलाकातें न्यायपालिका के पारंपरिक कार्यों से बहुत अलग होती हैं, और यह समझना जरूरी है कि इसका न्यायिक स्वतंत्रता पर कोई असर नहीं पड़ता।

मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ का बयान तब आया जब कई विपक्षी नेताओं ने उनकी गणेश पूजा के दौरान प्रधानमंत्री के साथ मुलाकात पर सवाल उठाए थे। इस मुलाकात को लेकर कुछ राजनीतिक वर्गों ने आरोप लगाया कि न्यायपालिका ने सरकार के साथ "समझौता" कर लिया है। हालांकि, सीजेआई ने स्पष्ट किया कि न्यायाधीश कई सामाजिक और पारिवारिक समारोहों में शामिल होते हैं, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि न्यायिक कार्य प्रभावित होते हैं।

इस मुद्दे पर सवाल यह भी उठता है कि जब इफ्तार पार्टियों में मुख्य न्यायाधीश, प्रधानमंत्री, या राष्ट्रपति जैसे नेता शामिल होते हैं, तो इसे सामाजिक सौहार्द के रूप में देखा जाता है, लेकिन गणेश पूजा के दौरान क्यों इतनी आपत्ति? क्या गणेश पूजा में प्रधानमंत्री को आमंत्रित करना या उनकी उपस्थिति को स्वीकार करना एक गलत कदम था? क्या सीजेआई को अपनी आस्था मानने का अधिकार नहीं है?

मुख्य न्यायाधीश के बयान से यह साफ होता है कि उनका और प्रधानमंत्री का एक धार्मिक समारोह में मिलना एक आम परंपरा और औपचारिकता का हिस्सा था। इसे न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर कोई खतरा नहीं माना जाना चाहिए, और यह मुलाकातें केवल प्रशासनिक मामलों के संबंध में होती हैं, न कि न्यायिक मामलों के लिए। गौर करने वाली बात ये भी है कि, अगर कोई समझौता करना भी हो, तो क्या उसके लिए इस तरह सार्वजनिक रूप से मिला जाएगा ? ये काम तो फोन पर या किसी गुप्त मुलाकात के भी हो सकते थे, उसके लिए दुनिया को दिखाने की क्या जरूरत पड़ती थी?

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