लोग शर्मीलापन और इंट्रोवर्ट व्यवहार को एक ही समझते है. मगर ये दोनों बातें अलग-अलग है. जरूरी नहीं कि हर इंट्रोवर्ट व्यक्ति शर्मिला हो और हर शर्मिला व्यक्ति इंट्रोवर्ट हो. कोई इंट्रोवर्ट व्यक्ति अकेले समय गुजारने का आनंद ले सकता है, मगर दूसरों के साथ अधिक बिताने पर खुद को भावनात्मक रूप से कमजोर पाता है.
शर्मिला व्यक्ति जानबूझ कर अकेले नहीं रहना चाहता मगर दूसरों के साथ बात करने में थोड़ा डरता है. इसे एक उदाहरण से समझते है. एक क्लास में दो बच्चे है, एक इंट्रोवर्ट और दूसरा शर्मिला. टीचर ने क्लास में सभी बच्चो के लिए एक्टिविटी तैयार की. जिसके नतीजे में इंट्रोवर्ट बच्चा मेज पर ही बने रह कर किताब पढ़ेगा, क्योंकि दूसरों के साथ घुलना-मिलना उसे तनाव देगा.
शर्मिला बच्चा अन्य बच्चो के साथ एक्टिविटी करना चाहता है मगर डर-शर्म के कारण वह नहीं उठता. शर्मीले व्यक्ति की झिझक थेरेपी के माध्यम से दूर की जा सकती है. मगर इंट्रोवर्ट को एक्स्ट्रोवर्ट बनाने की कोशिश तनाव पैदा कर सकती है, इससे उस व्यक्ति के आत्मसम्मान को भी ठेस पहुँचती है.
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