फर्जी वीडियो के जरिए मोदी सरकार को घेर रहे थे दिग्विजय सिंह, सोशल मीडिया यूज़र्स ने खोल दी पोल

फर्जी वीडियो के जरिए मोदी सरकार को घेर रहे थे दिग्विजय सिंह, सोशल मीडिया यूज़र्स ने खोल दी पोल
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भोपाल: कांग्रेस के दिग्गज नेता और मध्य प्रदेश के पूर्व सीएम दिग्विजय सिंह ने सोशल मीडिया पर एक पुराना वीडियो शेयर कर मोदी सरकार की आलोचना करने की कोशिश की, लेकिन वीडियो पाकिस्तान का निकला, जिससे सोशल मीडिया पर उन्हें काफी आलोचना का सामना करना पड़ा। वीडियो में एक बच्चा एक कविता सुना रही है, जिसमें समाज में गरीबों के सामने आने वाली कठिन परिस्थितियों का वर्णन किया गया है। 

 

वीडियो के कैप्शन में दिग्विजय सिंह ने लोगों को युवा लड़की की बात सुनने के लिए प्रोत्साहित किया और भारत में गरीबों की दुर्दशा को उजागर करते हुए सुझाव दिया कि मोदी सरकार वास्तविकता को नहीं समझ रही है। दिग्विजय ने वीडियो शेयर करते हुए लिखा कि, ''इस नन्ही बच्ची से सुनें इस देश में गरीबी के हालात, जो मोदी शाह समझ नहीं रहे हैं।'' उस वीडियो में बच्ची कहती है कि, 'खुद्दार मेरे शहर के फांके से मर गया, राशन जो आ रहा था वो अफसर के घर गया। चढ़ती रही मजार पे चादरें तो बेशुमार, बाहर जो एक फकीर था वो सर्दी से मर गया। रोटी अमीर ए शहर के कुत्तों ने छीन ली, फांका गरीब ए शहर के बच्चों में बट गया। चेहरा बता रहा था के मारा है भूख ने, मगर हकीम ने कह दिया के कुछ खा के मर गया।'

हालाँकि, जिस वीडियो के जरिए दिग्विजय सिंह ने मोदी सरकार को घेरने की कोशिश की है, वो  भारत का नहीं बल्कि पाकिस्तान का था। जब यह तथ्य सामने आया तो सोशल मीडिया यूजर्स भ्रामक सामग्री साझा करने और राजनीतिक उद्देश्यों के लिए झूठ फैलाने के लिए कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह को लताड़ लगाने लगे।

 

इस घटना ने विवाद खड़ा कर दिया है और सोशल मीडिया पर जानकारी साझा करते समय राजनीतिक नेताओं की जिम्मेदारी पर सवाल उठाए हैं। यह घटनाक्रम राजनेताओं द्वारा साझा की जाने वाली सामग्री को सत्यापित करने और अपने संचार में सटीक और जिम्मेदार होने की आवश्यकता पर प्रकाश डालता है। दिग्विजय सिंह की कार्रवाई राजनीतिक बयानों और संदेश के लिए उपयोग करने से पहले तथ्य-जांच के महत्व और जानकारी की सटीकता सुनिश्चित करने की याद दिलाती है। यह उन चुनौतियों और विवादों को भी रेखांकित करता है जो सोशल मीडिया और सूचना के तेजी से प्रसार के युग में उत्पन्न हो सकते हैं। आलोचना अगर तथ्यों के आधार पर की जाए, तो ही बेहतर रहता है, वरना जनता के बीच विश्वसनीयता ख़त्म हो जाती है

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