कैसी है सुशांत की आखिरी फिल्म दिल बेचारा?

कैसी है सुशांत की आखिरी फिल्म दिल बेचारा?
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सुशांत की आखिरी फिल्म दिल बेचारा आखिरकार रिलीज हो ही गई है. ऐसे में हम बताने जा रहे हैं आपको मूवी का रिव्यु.

फिल्म : दिल बेचारा
अवधि: एक घंटा, 41 मिनट 26 सेकंड
स्‍टार: 4 स्‍टार

इस वजह से देख सकते हैं: सुशांत के जाने के बाद भी अगर आप उन्हें महसूस करना चाहते हैं उनके काम को देखना चाहते हैं तो इस फिल्म को जरूर देखिये. आपको बता दें की सुशांत सिंह राजपूत की आखिरी फिल्म 'दिल बेचारा' का प्रीमियर शुक्रवार शाम 7.30 बजे ओटीटी प्लेटफॉर्म डिज्नी प्लस हॉटस्टार पर हुआ. वहीं इस फिल्म को फैन्स ने दिल खोलकर देखा. इस फिल्म के कारण ट्विटर पर शाम से ही नंबर 1 पोजिशन पर #DilBecharaDay हैशटेग ट्रेंड कर रहा था.

फिल्म में क्या है - ‘दिल बेचारा’ हॉलीवुड फिल्‍म ‘दी फॉल्‍ट इन ऑवर स्‍टार्स’ की रीमेक है. इस फिल्म में कहानी एक सवाल से शुरू होती है और इसी सवाल पर खत्‍म होती है. सवाल यह है कि ‘क्‍या किसी के जाने के बाद खुशी से रहा जा सकता है’? ‘क्‍या अधूरेपन के साथ जीने को मजबूर लोग खुश रह सकते हैं? ‘किसी के जाने के ख़याल को क्‍या स्‍वीकार किया जाए? ‘जिंदगी कुछ लोगों के साथ बहुत बेरहम क्‍यों है?’

सुशांत के डायलॉग्स - 'जन्म कब लेना है और कब मरना है ये तो हम डिसाइड नहीं कर सकते, लेकिन कैसे जीना है ये हम डिसाइड करते हैं.'
'जब कोई मर जाता है उसके साथ जीने की उम्मीद भी मर जाती है, पर मौत नहीं आती.'
'मैं बहुत बड़े-बड़े सपने देखता हूं पर उन्हें पूरा करने का मन नहीं करता.'
'प्यार नींद की तरह होता है धीरे-धीरे आता है और फिर आप उसमें खो जाते हैं.'
'हीरो बनने के लिए पॉपुलर नहीं होना पड़ता, वो रियल लाइफ में भी होते हैं.'
'मैं एक फाइटर हूं और मैं बहुत बढ़िया तरीके से लड़ा.'

कहानी - इस कहानी में हीरो इमैनुएल जूनियर राजकुमार उर्फ मैनी को बीमारी के चलते एक पांव खोना पड़ता है. वहीं हीरोइन किज्‍जी बासु थॉयरॉयड कैंसर पीड़ित है और मैनी के दोस्त जगदीश पांडे को आंख की बीमारी है. इस फिल्म में आगे चलकर उसका अंधा होना तय है. इन सभी के बीच भी हर किरदार के अपने सपने हैं. किज्‍जी को अपने फेवरेट सिंगर अभिमन्‍यु वीर से मिलना है. वहीं मैनी को किज्‍जी का सपना पूरा करना है. इस फिल्म की कहानी जमशेदपुर जैसी जगह से निकलकर आगे बढ़ती है. फिल्म में सभी का कड़वी हकीकतों से दूर जाने का इरादा है. फिल्म के किरदारों के नजदीक आती मौत से दूर भागने की जद्दोजहद दिखाई देती है. इस फिल्म में मैनी खुशमिजाज रहने की कोशिश करता है. वहीं किज्‍जी को जीने की वजह देता है लेकिन उसे पता है कि आखिरकार क्‍या होने को है. इसी के साथ वह किसी हाल में उम्‍मीद का दामन नहीं छोड़ता और यह किज्‍जी में बदलाव लाता है. 

कमी- इस फिल्म में सधे हुए जवाब की तलाश दिखाई दी है इस कारण इसमें किसी चीज की कमी अखरती नहीं है.

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