बहुत कम लोग इस बात से वाकिफ हैं कि दिवाली के दिन माँ लक्ष्मी को बुलाने उनका आह्वान करने का ख़ास मंत्र क्या है। ऐसे में आज हम आपको बताने जा रहे हैं कैसे हमारे पूर्वज करते थे माँ महालक्ष्मी का आह्वान।
पद्मानने पद्मिनी पद्मपत्रे पद्मप्रिये
पद्मदलायताक्षि विश्वप्रिये विश्वमनोनुकूले
त्वत्पादपद्मं मयि सन्निधस्त्व।।
हे लक्ष्मी देवी,
आप कमलमुखी,
कमलपुष्प पर विराजमान,
कमल दल के समान नेत्रों वाली
कमल पुष्पों को पसंद करने वाली हैं।
सृष्टि के सभी जीव आपकी कृपा की कामना करते हैं,
आप सबको मनोनुकूल फल देने वाली हैं।
आपके चरण सदैव मेरे हृदय में स्थित हों।
आप सभी जानते ही होंगे कि ऐश्वर्य, सौभाग्य, समृद्धि और वैभव की अधिष्ठात्री देवी श्री महालक्ष्मी का पूजन, अर्चन, वंदन स्तवन का पर्व दिवाली को माना जाता है। यह पर्व बहुत ख़ास होता है। दिवाली के दिन अगणित दीपों के प्रकाश में विष्णुप्रिया महालक्ष्मी का आह्वान करते हैं लेकिन उसके लिए कुछ ख़ास मंत्र है। जी हाँ, ऋग्वेद के दूसरे अध्याय के छठे सूक्त में आनंद कर्दम ऋषि द्वारा श्री देवी को समर्पित वाक्यांश मिलता है। इन्हीं पवित्र पंक्तियों को भारतीय जनमानस ने मंत्र के रूप में स्वीकारा है। जो आज हम आपको बताने जा रहे हैं।
ॐ हिरण्य वर्णा हरिणीं सुवर्णरजस्त्राम
चंद्रा हिरण्यमयी लक्ष्मी जात वेदो म्आवह।
अर्थात् हरित और हिरण्यवर्णा,
हार, स्वर्ण और रजत सुशोभित
चंद्र और हिरण्य आभा
देवी लक्ष्मी का,
हे अग्नि, अब तुम करो आह्वान
इसी मंत्र की आगे सुंदर पंक्तियां हैं
'तामं आवह जात वेदो
लक्ष्मी मनपगामिनीम्
यस्या हिरण्यं विदेयं
गामश्वं पुरुषानहम्
अश्वपूर्वा रथमध्यां
हस्तिनाद प्रमोदिनीम्
श्रियं देवी मुपव्हयें
श्रीर्मा देवी जुषताम।।
इसका काव्यात्मक अर्थ किया जाए तो इस तरह होगा कि
'करो आह्वान
हमारे गृह अनल, उस देवी श्री का अब,
वास हो जिसका सदा और जो दे धन प्रचुर,
गो, अश्व, सेवक, सुत सभी,
अश्व जिनके पूर्वतर,
मध्यस्थ रथ,
हस्ति रव से प्रबोधित पथ,
देवी श्री का आगमन हो,
यही प्रार्थना है!
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