दिवाली आई नहीं, पटाखों पर भी है पूर्ण बैन, फिर भी दिल्ली की हवा 'खतरनाक' स्तर पर

दिवाली आई नहीं, पटाखों पर भी है पूर्ण बैन, फिर भी दिल्ली की हवा 'खतरनाक' स्तर पर
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नई दिल्ली: दिल्ली में दिवाली से पहले ही हवा की गुणवत्ता गुरुवार (2 नवंबर) को 'खतरनाक' हो गई है। विवरण के अनुसार, दिल्ली का मुंडका क्षेत्र 616 पर वायु गुणवत्ता सूचकांक के साथ चार्ट में सबसे ऊपर है। संपूर्ण NCR बड़े पैमाने पर मैरून झंडों से भरा हुआ है, जो 'खतरनाक' वायु गुणवत्ता का प्रतीक है। हवा की कम गति और पंजाब में लगातार पराली जलाना वायु गुणवत्ता स्तर गिरने का प्रमुख कारण रहा है।

इससे पहले बुधवार को दिल्ली में हवा की गुणवत्ता लगातार पांचवें दिन "बहुत खराब" श्रेणी में रही, अधिकतम तापमान 32.3 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया था। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के आंकड़ों के अनुसार, दिल्ली का समग्र वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI) शाम 7 बजे 357 दर्ज किया गया। उसी दिन, दिल्ली उच्च न्यायालय ने वन विभाग से कहा कि वह राजधानी की वायु गुणवत्ता के लिए जिम्मेदार है और उसे यह सुनिश्चित करने के लिए कदम उठाने चाहिए कि यहां वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI) में सुधार हो।

न्यायमूर्ति जसमीत सिंह ने दिल्ली में वैकल्पिक वन के निर्माण और विभाग में रिक्तियों को भरने के मुद्दों पर सुनवाई करते हुए कहा था कि प्रदूषित हवा में सांस लेने के कारण बच्चे अस्थमा से पीड़ित हो रहे हैं। इस बीच, दिल्ली नगर निगम (MCD) ने बुधवार को कहा कि उसने शहर में वायु प्रदूषण से निपटने के उपाय करने के लिए प्रति क्षेत्र 20 लाख रुपये आवंटित किए हैं, जहां पिछले एक सप्ताह से वायु गुणवत्ता में गिरावट देखी जा रही है।

बता दें कि, प्रदूषण के नाम पर पिछले दो वर्षों से, दिल्ली सरकार ने दिवाली पर हर तरह के पटाखों पर पूर्ण प्रतिबंध लगा रखा है, यहाँ तक कि, ग्रीन पटाखों की भी अनुमति नहीं दी गई है। लेकिन इसके बावजूद दिल्ली की आबोहवा में कोई सुधार नहीं हो रहा है। पटाखों पर प्रतिबंध का मुद्दा हर साल दिवाली से पहले सामने आता है, जिसमें पतझड़ के मौसम के दौरान दिल्ली और पड़ोसी क्षेत्रों में होने वाले गंभीर वायु प्रदूषण के लिए इस त्योहार को जिम्मेदार ठहराया जाता है। अध्ययनों से पता चलता है कि वायु प्रदूषण में त्योहार का योगदान नगण्य और अस्थायी है, इसके बावजूद हर साल दिवाली को लक्षित किया जाता है, जबकि प्रमुख कारण आसपास के राज्यों में किसानों द्वारा जलाई जाने वाली पराली, वाहन और निर्माण गतिविधियां, मौसम का मिजाज और क्षेत्र की भौगोलिक स्थिति हैं। इन चीज़ों पर उतना ध्यान नहीं दिया जाता। 

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