क्या सच में मरे हुए लोगों का मांस खाते है अघोरी...!

क्या सच में मरे हुए लोगों का मांस खाते है अघोरी...!
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महाकुंभ की प्रतीक्षा अब पूरी तरह से खत्म हो चुका है. सोमवार यानि 13 जनवरी को संगम नगरी प्रयागराज में वो दिन आ ही चुका है जिसकी हर किसी को प्रतीक्षा है. महाकुंभ के लिए भारत के कई हिस्सों से लेकर विदेशों तक से श्रद्धालु यहां आ रहे है. यहां सबसे अधिक आकर्षण का केंद्र भी बन चुके है अघोरी बाबा. अघोरी वही, जो कापालिक क्रिया करते हैं. वही जो तांत्रिक साधना श्मशान में जाकर करना पसंद करते है और वह अपने पूरे शरीर को भस्म से लपेट लेते है. जिन्हें देख लोगों के मन में एक अजीब सा डर भी बना हुआ होता है. तो आज हम आपको उस सच से रूबरू करवाएंगे जिसे लेकर अघोरी हमेशा से चर्चाओं का विषय बने रहते है, तो चलिए जानते है इस बारें में विस्तार से....

असल में अघोर विद्या डरावनी नहीं होती बस उसका रूप बहुत ही ज्यादा डरा देने वाला है. अब आप सोच रहें होंगे कि  अघोर का क्या मतलब है दरअसल अघोर का अर्थ है अ+घोर यानी जो घोर नहीं हो, डरावना नहीं हो, जो सरल हो, जिसमें कोई भेदभाव बिलकुल भी नहीं है. अघोर बनने की पहली शर्त है अपने मन से घृणा को पूरी तरह से निकाल देना चाहिए. अघोर क्रिया व्यक्ति को सहज बनाने का काम भी करते है. मूलत: अघोरी उसे बोला है जो श्मशान जैसी भयावह और विचित्र  स्थान पर भी उसी सहजता से रह सके जैसे लोग घरों में ही रहते है.

अब खबरें आ रही है कि अघोरी मानव के मांस खाना पसंद करते है. ऐसा करने के पीछे यही तर्क है कि व्यक्ति के मन से पूरी तरह से घिन को निकाल दें, जिनसे समाज घृणा करता है अघोरी उन्हें अपना लेता है. मुर्दे के मांस,लोग श्मशान, लाश व कफ़न से घृणा करते हैं लेकिन अघोर इन्हें अपना लेते है. इतना ही नहीं अघोर विद्या भी व्यक्ति को हर चीज के प्रति समान भाव रखने की शिक्षा भी पूरी तरह से अपने पास ही रखते है. खबरों की माने तो अघोरी तंत्र को बुरा समझने वाले शायद यह नहीं जानते हैं कि इस विद्या में लोक कल्याण की भावना भी जागृत हो जाती है. अघोर विद्या व्यक्ति को ऐसा बना देते है इसमें वह अपने-पराए का भाव भूलकर हर व्यक्ति को समान रूप से चाह रहे है, उसके भले के लिए अपनी विद्या का इस्तेमाल करते है.

अघोर विद्या के जानकारों का मानना है कि जो असली अघोरी भी कहे जाते है  वे कभी आम दुनिया में सक्रिय भूमिका के लिए बिलकुल भी नहीं है, वे केवल अपनी साधना में ही बिजी रहते है. अघोरियों की पहचान ही यही है कि वे किसी से कुछ मांग रहे है.

अवधूत दत्तात्रेय भगवान शिव का है रूप:  खबरों की माने तो अघोर पंथ के प्रणेता भगवान शिव ही होते है. बोला जाता है कि भगवान शिव ने स्वयं अघोर पंथ को प्रतिपादित कर दिया था. इतना ही नहीं अवधूत भगवान दत्तात्रेय को भी अघोरशास्त्र का गुरु भी कहा जाता है. वहीं  अवधूत दत्तात्रेय को भगवान शिव का एक स्वरुप भी कहा जाता है. अघोर संप्रदाय के विश्वासों की माने तो  ब्रह्मा, विष्णु, शिव इन तीनों के अंश और स्थूल रूप में दत्तात्रेय जी ने ही रूप लिया है. अघोर संप्रदाय के एक संत के रूप में बाबा किनाराम की पूजा अर्चना करते है. अघोर संप्रदाय के व्यक्ति शिव जी के परम भक्त होते हैं. इनके मुताबिक शिव स्वयं में संपूर्ण हैं और जड़, चेतन समस्त रूपों में विद्यमान कहे जाते है. वहीं ये भी कहा जा रहा है कि इस शरीर और मन को साध कर और जड़-चेतन और सभी स्थितियों का अनुभव कर के और इन्हें जान कर मोक्ष की प्राप्ति भी कर सकती है.

नर मुंडों की माला धारण करते है अघोर: इतना ही नहीं अघोर संप्रदाय के साधक समदृष्टि के लिए नर मुंडों की  और नर मुंडों को पात्र के तौर पर इस्तेमाल भी कर सकते है. चिता के भस्म का शरीर पर लेपन और चिताग्नि पर भोजन पकाना आदि बहुत ही आम बात है. अघोर दृष्टि में स्थान भेद भी नहीं होता अर्थात महल या श्मशान घाट दोनों ही एक जैसे होते है.

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