नई दिल्ली: देश की सुप्रीम कोर्ट ने सरकारी नौकरी में प्रमोशन को लेकर बेहद अहम टिप्पणी की है। अदालत ने कहा कि सरकारी कर्मचारियों को प्रमोशन देने के मानदंडों का संविधान में कहीं भी उल्लेख नहीं है। अदालत ने कहा कि सरकार और कार्यपालिका प्रमोशन के मानदंडों को निर्धारित करने के लिए स्वतंत्र है। प्रधान न्यायाधीश (CJI) डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने अपने फैसले में कहा कि, "भारत में कोई भी सरकारी कर्मचारी प्रमोशन को अपना अधिकार नहीं मान सकता है, क्योंकि संविधान में इसके लिए कोई मानदंड तय नहीं किया गया है।''
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि विधायिका या कार्यपालिका रोजगार की प्रकृति और उम्मीदवार से अपेक्षित कार्यों के आधार पर पदोन्नति के पदों पर रिक्तियों को भरने की विधि निर्धारित कर सकती है। अदालत ने आगे कहा कि न्यायपालिका यह तय करने के लिए समीक्षा नहीं कर सकती कि पदोन्नति के लिए अपनाई गई नीति 'सर्वश्रेष्ठ प्रत्याशियों' के चयन के लिए उपयुक्त है या नहीं। बता दें कि गुजरात में जिला न्यायाधीशों के चयन पर विवादों पर अपना फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने ये बातें कही हैं।
जस्टिस पारदीवाला ने फैसला लिखते हुए कहा कि, "हमेशा यह धारणा होती है कि काफी समय से काम कर रहे कर्मचारियों ने संस्था के प्रति वफादारी दिखाई है और इसलिए वे अपने करियर में संस्था से भी इसी प्रकार के व्यवहार के हकदार हैं।" उन्होंने आगे कहा कि पिछले कुछ वर्षों में शीर्ष अदालत ने लगातार यह फैसला सुनाया है कि जहां योग्यता और वरिष्ठता के सिद्धांत पर प्रमोशन देना तय है, वहां योग्यता पर ज्यादा जोर दिया जाना चाहिए।
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