सनातन धर्म में प्रत्येक तिथि का विशेष महत्व होता है, और उन्हीं में से एक विशेष दिन है वैकुंठ चतुर्दशी। यह पर्व कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाया जाता है, जो मुख्य रूप से भगवान विष्णु और भगवान शिव की पूजा का दिन होता है। इस दिन का संबंध विशेष रूप से पितृदोष से भी है, क्योंकि इसे पितरों को शांति देने और मोक्ष की प्राप्ति के अवसर के रूप में देखा जाता है। पंचांग के अनुसार, इस बार वैकुंठ चतुर्दशी का पूजन 14 नवंबर को ही किया जाएगा।
वैकुंठ चतुर्दशी पूजा का शुभ मुहूर्त
वैकुंठ चतुर्दशी के दिन प्रभु श्री विष्णु और भगवान शिव की पूजा के लिए निशिता काल की अवधि रात 11 बजकर 39 मिनट से 12 बजकर 32 मिनट तक रहेगी। इस दौरान भक्तों को पूजा करने के लिए कुल 53 मिनट का समय मिलेगा।
दीपदान करने की विधि
सबसे पहले एक बर्तन में शुद्ध जल भरें।
फिर कच्चे घी का दीपक जलाएं।
दीपक जलाते समय "ओम नमो भगवते वासुदेवाय" मंत्र का जाप करें।
दीपक को किसी नदी, तालाब या जल के अन्य स्रोत में प्रवाहित करें।
दीपदान करते समय अपने पितरों को याद करें और उन्हें समर्पित करें।
तिल के तेल से तर्पण करें।
किसी गरीब या जरूरतमंद को दान दें।
दीपदान के नियम
दीपदान करते समय मन को शुद्ध रखें।
विधि-विधान का पालन करें।
श्रद्धा के साथ दीपदान करें।
सात्विक भोजन करें।
दीपदान के दिन किसी की निंदा या चर्चा से बचें।
इस प्रकार, वैकुंठ चतुर्दशी के दिन उपरोक्त विधियों से पूजा और दीपदान करने से व्यक्ति को पितरों का आशीर्वाद मिलता है और घर में सुख-शांति बनी रहती है।
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