नया वर्ष आने पर ख़ुशी कम खुजली अधिक होने लग जाती है। मतलब ऐसा क्या कर डालें कि शरीर की नस-नस तक झूम उठे। फिर ले पार्टी, ले दारू, ले रंगबाज़ी रेलम-पेल चल रही है। ऐसा नहीं है कि हम ये करना ही चाह रहे है। मगर जब पूरी दुनिया ही बवाल हौके पड़ी हो तो अपन लोग भी बौरा ही जाते हैं। मगर आलसी लोग इस मोह-माया से एकदम अलग है। #ResolutionFree2023 ‘वो ये कर रहा है और मैं वो क्यों नहीं कर पा रहा। मुझे करना जरुरी है। मुझे करना ही होगा।’ ऐसी भसड़ आलसियों की जिंदगी में रहती ही नहीं। आलसियों को कोई फ़र्क नहीं पड़ता कि कौन क्या करने में लगा हुआ है। यही लिए वो न्यू ईयर के पीयर प्रेशर से बच जाते हैं।
1. जिम जाने का दबाव नहीं रहता: नए वर्ष पर अचानक ही जिम में कसरती युवाओं की बाढ़ आने लग जाती है। देखा-देखी हर शख़्स सुबह-शाम जिम में दंड पेलने लग जाता है। यदि आलसी इन सबसे से परे बिस्तर पर करवट बदलते सोच रहा होता है ‘पेट निकला है तो क्या, जीन्स थोड़ा ऊपर चढ़ा कर पहन लूंगा।’
2. दारू पीना ज़रूरी नहीं: ‘आलस बुरी बला है।’ ऐसा कहने वाले ग़लत हैं जनाब! आलस तो बुरी बलाओं से दूर ही रखता है। भइया देखो, बारात का स्वागत पान पराग से हो न हो, मगर न्यू ईयर का स्वागत दारू से ही होता है। यदि आलसी आदमी नए साल पर दारू पिए, ऐसा आवश्यक नहीं है। उसका एक ही मंत्र है, ‘इतनी ठंड में कौन जाए लेने, जब ऑनलाइन डिलीवरी होगी तब पियूंगा।’
3. नई गाड़ी लेने का दबाव नहीं: खरबूजे को देख जैसे खरबूजा रंग बदलता है, वैसे ही नकलची लोगों की हरकतें भी देखने के लिए मिलती है। इसीलिए आपने नोटिस भी कर चुके है कि न्यू ईयर पर धकापेल गाड़ियां बिकने लग जाती है। यदि आलसी प्राणी खरबूजा नहीं, तरबूज़ होता है। आप ताने देकर कितनी ही उनकी अंदर तक लाल कर लें, लेकिन वो तरबूज़ की तरह बाहर से हमेशा हरे-भरे रहते हैं। उनका सीधा हिसाब है, ‘क्या करूंगा नई गाड़ी का, जब मुझे पुरानी से ही कहीं जाना नहीं होता।’
4. नए साल पर नए कपड़े ज़रूरी नहीं: अब आलसी आदमी को न पार्टी करनी है न दारू पीने जाना है और न ही जिम में दंड करना है। तो उस पर शॉपिंग करने को कोई दबाव नहीं रहा है। रही बात नए वर्ष पर घूमने जाने की तो भइया जो ठंड में संडास नहीं जाते, घूमना तो बहुत दूर की बात है। ऐसे में जब घर पर ही पड़े रहने है तो लोवर-टीशर्ट बहुत है।
5. सोशल मीडिया के बुरे प्रभाव से बचाव: ज़ाहिर सी बात भी कही जाए तो जो लोग नए साल पर तमाम चोचले देखने के लिए मिल रही है वो इसीलिए कि सोशल मीडिया पर तस्वीरें और वीडियो उड़ेल पाए। #NewYear #PartyHard #LaundaRangbaaz #KudiOnAFloor। यदि आलसी शख़्स न ये सब कर रहे है और न ही लोगों को करते देखता है। बिल्कुल गांधी जी के बंदरों की भांति। काहे कि सोशल मीडिया चलाने के लिए फ़ोन चार्ज करना पड़ता है और इसके लिए ख़ुद दो कदम चलना पड़ता है। इत्ती ज़हमत उठाने का सवाल ही नहीं उठ रहा है।
6. भगवान को कष्ट नहीं देते: नए वर्ष पर मंदिर न जाओ तो लोग आपके नाम का नास्तिक खाता खोल रहे है। ‘हौअ, तुम आज भी मंदिर नहीं गए, कैसी पापी आत्मा हो।’ जबकि सच ये है कि असली आस्तिक आलसी ही होते है। क्योंकि, नए वर्ष पर लोग भगवान के पास अपने लिए जाते हैं, जबकि आलसी भगवान की खातिर भगवान के पास नहीं जा पाता। अव्वल तो वो भगवान पर काम का एक्स्ट्रा बोझ नहीं डालना चाहता और दूसरा वो अपनी पनौती जैसी शक्ल दिखाकर भगवान का न्यू ईयर मनहूस नहीं बनाना चाह रहे है।
7. Resolution Free है आलसियों का जीवन: नए साल पर लोग रेज़ोल्यूशन ऐसे ले लेते है, जैसे उनके बाप वसीयत में लिखवा गए थे कि ससुरा हमारी औलाद ये न करिस तो जायदाद से बेदखल कर देते है। यदि आलसी लोग इन सबमें पड़ते ही नहीं। उनको मालूम है कि नया वर्ष कायम चूर्ण तो है नहीं, जो पुराने साल के कब्ज़ से राहत दे देने वाला है। और वैसे भी कलेंडर बदलने से हरकतें तो बदलेंगी नहीं। तो फ़ालतू की टेंशन और Resolution लेने का इच नहीं।
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