किसान आंदोलन के कारण भारत में आई कोरोना की दूसरी लहर ! देश-विदेश के 7 संस्थानों ने रिसर्च कर बनाई रिपोर्ट

किसान आंदोलन के कारण भारत में आई कोरोना की दूसरी लहर ! देश-विदेश के 7 संस्थानों ने रिसर्च कर बनाई रिपोर्ट
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नई दिल्ली: भारत में कोरोना वायरस के संक्रमण फैलने को लेकर काशी हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) सहित 7 रिसर्च संस्थानों की स्टडी रिपोर्ट सामने आ गई है। इंटरनेशनल जर्नल ‘MDPI कोविड’ में प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक, देश में कोरोना की दूसरी लहर की वजह किसान आंदोलन बना था। कोरोना के अल्फा वेरिएंट पर किए गए अध्ययन के आधार पर यह दावा किया गया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि, कोविड की दूसरी लहर में सिर्फ पंजाब के रास्ते से ही पूरे उत्तर भारत में संक्रमण फैला था और इसका जरिए बने थे किसान आंदोलन के प्रदर्शनकारी।

रिपोर्ट के मुताबिक, किसान आंदोलन के चलते कोरोना के मामलों में एकाएक इजाफा हुआ था। वर्ष 2020-21 में देश में कोरोना के अल्फा वेरिएंट का प्रसार असामान्य तरीके से हुआ था। अमूमन कोरोना का यह वेरिएंट तेजी से नहीं फैलता, मगर आंदोलनकारियों ने देश में खासकर उत्तर भारतीय राज्यों में कोरोना का यह वेरिएंट फैलाया था। अध्ययन में शामिल जाह्नवी बताती हैं कि, दिल्ली, पंजाब और चंडीगढ़ में अल्फा वैरिएंट की 44 जेनेटिक शाखाएँ मौजूद थीं। यही कारण था कि पूरे भारत के बजाय केवल उत्तर भारत में कोरोना का यह वैरिएंट तेजी से फैला। पंजाब में किसान आंदोलन के लिए हुए इवेंट्स, मीटिंग और सभाओं के चलते संक्रमण सामान्य से 5 से 10 गुना तेजी से बढ़ गया था।

रिसर्च करने वाली टीम की अगुवाई कर रहे BHU में जूलॉजी के प्रोफेसर ज्ञानेश्वर चौबे ने जानकारी दी है कि 3085 अल्फा वैरिएंट के जीनोमिक सीक्वेंस का विश्लेषण किया गया। इससे पता चला कि पंजाब सहित उत्तरी भारत के राज्यों में कोरोना के मामलों में आया उछाल अचानक नहीं था। इसके पीछे किसान आंदोलन का रोल था। रिसर्च से पता चला है कि अल्फा वेरिएंट (SARS-CoV-2) का पहला केस दिसंबर 2020 में दक्षिण पूर्वी ब्रिटेन से सामने आया था। इसके बाद यह पंजाब सहित पूरे उत्तर भारत में फैलने लगा। इस रिसर्च और रिपोर्ट को तैयार करने में तक़रीबन एक साल का वक़्त लगा है।

यह रिसर्च करने और इसकी रिपोर्ट तैयार करने में BHU, बीरबल साहनी पुराविज्ञान संस्थान लखनऊ, आनुवंशिक विभाग उस्मानिया विश्वविद्यालय हैदराबाद, जैव प्रौद्योगिकी विभाग स्वास्थ्य सम्बद्ध विज्ञान संस्थान गाजियाबाद, क्षेत्रीय फोरेंसिक प्रयोगशाला भोपाल, कलकत्ता यूनिवर्सिटी और अमृता स्कूल ऑफ बायोटेक्नोलॉजी के 15 साइंटिस्ट और रिसर्चर ने मिलकर काम किया है।

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