आप सभी जानते ही हैं कि इस साल दशहरा 8 अक्टूबर को है. वहीं दशहरे के दिन रावण का अंत होता है और बुराई पर अच्छे की जीत होती है. ऐसे में रावण के बारे में बात करें तो आज हम दशहरे से पहले बताने जा रहे हैं रावण के जन्म की कहानी. आइए जानते हैं.
रावण के जन्म की कहानी - रावण जन्म से एक ऋषि पुत्र था भगवान विष्णु द्वारा राक्षसों के विनाश से दुःखी होकर राक्षसों के मुखिया सुमाली (रावण का नाना ) ने अपनी पुत्री कैकसी से कहा कि पुत्री राक्षस वंश के कल्याण के लिये मैं चाहता हूँ कि तुम परम पराक्रमी महर्षि विश्रवा से विवाह करो और अपने पुत्रों में राक्षसी प्रेरणाएं उत्पन्न करो तभी हम राक्षसों की रक्षा हो सकती है. जब कैकसी ने महर्षि से संतान हेतु मिलन का समय चुना, उस समय भयंकर आँधी चल रही थी आकाश में मेघ गरज रहे थे कैकसी जानती थी कि कुबेला में उत्पन्न गर्भ से एक विनाशी संतान ही उत्पन्न हो सकती है तभी एक ब्रह्मवादी महात्मा का पुत्र होने के बाद भी अपनी राक्षसी माता की प्रेरणा से रावण राक्षस हुआ. रावण कोई नाम नहीं था बल्कि यह एक पद था राक्षसों के महाराजा को रावण पद से अलंकृत किया गया. रावण का असली नाम दशग्रीव था क्योंकि वह दससरों वाला असाधारण बालक था. रावण छह दर्शन और चार वेदों का ज्ञाता था इसलिए उसे दसकंठी भी कहा जाता है.''
आप सभी को बता दें कि रावण अपने विजय अभियान को लेकर यम लोक तक पहुँच गया था और इसी के साथ उसने यमराज तक को बंदी बना लिया था क्योंकि वह प्रकृति के नियम बदलना चाहता था वह चाहता था मृत्यु जैसी अवस्था का अंत कर दिया जाए मगर ये संभव न हो सका.
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