क्यों मनाया जाता है दशहरा, जानिए पौराणिक कथा

क्यों मनाया जाता है दशहरा, जानिए पौराणिक कथा
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हर साल दशहरे का पर्व मनाया जाता है और इस साल दशहरा का पर्व 5 अक्टूबर को मनाया जाने वाला है। आज हम आपको दशहरा पर्व की कथा बताएँगे, जो आपको जरूर पढ़नी चाहिए।

दशहरा पर्व की कथा- त्रेता युग में जब रावण जैसे पापी राजा का अत्याचार बहुत बढ़ गया था तथा उसके कारण धर्म का नाश होने लगा था तब सभी देवता सहायता मांगने भगवान विष्णु के पास गए थे। यदि सृष्टि में धर्म की हानि होने लगती हैं तथा अधर्म जीतने लगता हैं तब-तब भगवान विष्णु जन्म लेते हैं व धर्म की पुनः स्थापना करते हैं। इसलिये भगवान विष्णु ने अयोध्या के राजा दशरथ के घर पुत्र रूप में जन्म लिया जिनका नाम श्रीराम था। महर्षि वशिष्ठ से उन्होंने शिक्षा ग्रहण की तथा उसके बाद पुनः अयोध्या आ गए। तब राजा दशरथ उनके राज्याभिषेक की तैयारी कर ही रहे थे कि श्रीराम की सौतेली माँ कैकेयी ने षड़यंत्र के तहत उन्हें चौदह वर्ष का वनवास दिलवा दिया।

यह सब कुछ योजना के तहत हो रहा था क्योंकि यदि भगवान श्रीराम को वनवास नही मिलता तो रावण जैसे पापी का अंत भी नही हो पाता। चौदह वर्ष का वनवास भी आवश्यक था क्योंकि रावण की राक्षसों की सेना इतने वर्षों में बहुत बड़ी हो गयी थी तथा भयंकर राक्षस भारत की धरती पर हर जगह फैल चुके थे। रावण का साम्राज्य समुंद्र के उस पार लंका में था (Dussehra Ki Katha In Hindi) लेकिन इधर भारत की भूमि पर भी उसके राक्षस रहा करते थे। इसलिये तेरह वर्षों तक श्रीराम ने अपने छोटे भाई लक्ष्मण सहित एक-एक करके इस ओर के सभी राक्षसों का वध कर दिया। वनवास के अंतिम वर्ष में भगवान की माया से ऐसी घटना घटी जिसने सीधा रावण को चुनौती (Dussehra Ki Kahani) दे डाली।

रावण की बहन शूर्पनखा की नाक व एक कान लक्ष्मण के द्वारा काट दिए गए। यह बात जब रावण तक पहुंची तो वह उनसे सीधे युद्ध करने की बजाए धोखे से श्रीराम की पत्नी सीता का हरण कर लंका ले आया। अब यह श्रीराम को सीधी चुनौती थी। उन्होंने किष्किन्धा के राजा बालि का वध करके उनके छोटे भाई सुग्रीव को वहां का राजा नियुक्त किया। अब सुग्रीव की सेना के साथ श्रीराम ने लंका पर चढ़ाई शुरू कर दी। इसके लिए भारत की भूमि से लेकर लंका तक समुंद्र पर सौ योजन लंबे सेतु का निर्माण किया गया जो रामसेतु कहलाया।

इस सेतु के द्वारा श्रीराम सहित पूरी सेना लंका पहुँच गई। फिर भीषण युद्ध शुरू हुआ जिसमे एक-एक करके रावण के सभी पराक्रमी योद्धा, भाई-बंधू, पुत्र इत्यादि मारे गए। अंत में केवल रावण बचा था हालाँकि उसका एक भाई विभीषण युद्ध से पहले ही श्रीराम की सेना के साथ जा मिला था जो बाद में लंका का राजा बना था। दशहरा से पहले तक जब रावण के सभी योद्धा मारे गए तब रावण ने स्वयं युद्धभूमि में जाने के निर्णय किया। आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि के दिन श्रीराम व रावण के बीच भीषण युद्ध हुआ। इस युद्ध में श्रीराम में एक-एक करके रावण के सभी दस मस्तक काट डाले जो कि बुराई के प्रतीक थे। अंत में श्रीराम ने रावण की नाभि में स्थित अमृत को सुखा डाला तथा ब्रह्मास्त्र का अनुसंधान करके उस पापी का अंत कर दिया। श्रीराम की अधर्म पर धर्म की इसी विजय के प्रतीक के रूप में हम सभी दशहरा पर्व मनाते हैं।

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