एक गाना है कुर्बानी, कुर्बानी, कुर्बानी अल्लाह को प्यारी है कुर्बानी। यह गाना सुनते हुए हम बड़े हुए और समझने लगे कि अल्लाह कहो या भगवान या ईशू सबको कुर्बानी यानी त्याग पसंद है। त्याग हमारे गंदे इरादों का, कुर्बानी अपने अहं की? कुर्बानी देश के लिए, देशवासियों की हिफाजत के लिए कुर्बानी से अल्लाह खुश होता है। लेकिन कश्मीर में ईद की नमाज के बाद अल्लाह के कुछ बंदों ने कुर्बानी के नाम पर जो किया, उसे कहीं से भी जायज नहीं ठहराया जा सकता।
नजरिया: अगले जनम मोहे बिटिया न कीजो...
अल्लाह हो अकबर चिल्लाते हुए देश के दुश्मनों और आतंकवादियों का झंडा लहराना क्या किसी भी तरह से उचित करार दिया जा सकता है? सेना के जवान देश को आतंकियों से बचाने के लिए अपना सब कुछ निछावर कर देते हैं, अपने प्राणों की आहुति मां भारती की रक्षा के लिए दे देते हैं। जब कश्मीरी किसी आपदा में फंसते हैं, तो यही जवान उनकी मदद को अपना हाथ बढ़ाते हैं, उन जवानों पर ईद की नमाज के बाद पत्थरबाजी को क्या कहा जाए? अल्लाह के नाम पर हो रही इन वारदातों को क्या संज्ञा दी जाए, समझ नहीं आता। यह पहली बार नहीं है, जब खूबसूरत घाटी को इन वारदातों से गंदा किया गया हो। कश्मीर में सेना के खिलाफ पत्थरबाजी की घटनाएं आम हैं। पाकिस्तानी झंडे लहराना भी वहां पर आम बात है, लेकिन अब तो कुछ लोगों ने आतंकी संगठन आईएसआईएस को अपना सरगना मान लिया और उसके झंडे लहरा दिए।
चैलेंज का फितूर या जान का जोखिम
जो लोग इस तरह की वारदातों को अंजाम देते हैं, वह हमारे और आपके बीच के ही लोग हैं। दरअसल, इस तरह की घटनाओं को करने वालों को खुद नहीं पता कि वह क्या कर रहे हैं? इन्हें यह समझना होगा कि परवरदिगार ऐसी कुर्बानी नहीं चाहता, इससे वह खुश नहीं होगा। यह हमारी जिम्मेदारी है, हर देशवासी की जिम्मेदारी है कि हम खुद अपने कर्तव्य को निभाएं। हर कश्मीरी इस बात को समझे कि इस तरह की वारदातों के पीछे जो लोग हैं, उनकी मंशा हित की नहीं बल्कि देश के अहित करने की है। अन्यथा ये लोग कश्मीर में इन घटनाओं को यूं ही अंजाम देते रहेंगे और देश के तथाकथित रहनुमा केवल टीवी चैनलों पर बहस कर अपने कर्तव्य की इतिश्री मान लेंगे।
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