भारत में रेल को यातायात का सबसे सुगम साधन माना जाता है। रोज देश में लाखों लोग ट्रेन से अपनी मंजिल तक का सफर तय करते हैं, लेकिन कई बार कुछ लोग अपनी मंजिल तक पहुंच ही नहीं पाते और रास्ते में भी उनकी ट्रेन किसी हादसे का शिकार हो जाती है। आज सुबह ही रायबरेली में फरक्का एक्सप्रेस की 9 बोगियां पटरी से उतर गईं। इस हादसे में 7 लोगों की मौत हो गई, जबकि 21 अन्य घायल हो गए। आए दिन होने वाले ऐसे हादसे यह सोचने पर मजबूर कर देते हैं कि आखिर इतनी लापरवाही क्यों? कौन है इस तरह की लापरवाही के लिए जिम्मेदार?
अगर आंकड़ों पर गौर करें, तो हर साल दसियों ट्रेन हादसे होते हैं, जिनमें आम आदमी को जान—माल का नुकसाना होता है। अभी जुलाई 2018 में ही सेंट थॉमस माउंट रेलवे स्टेशन पर एक ट्रेन हादसा हुआ था, जिसमें 5 यात्रियों की मौत हो गई थी। अक्सर देखने में आता है कि इस तरह के रेल हादसों के बाद अधिकारियों या ट्रेन के ड्राइवर या गार्ड पर कार्यवाही होती है और उन्हें या तो उनके पद से निलंबित कर दिया जाता है या फिर उनका तबादला कर दिया जाता है। लेकिन इन हादसों का कोई समाधान नहीं निकलता है।
हादसा, सांत्वना, कार्यवाही, निलंबन, तबादला और फिर हादसा। लेकिन समाधान वही ढांक के तीन पात। यहां पर सवाल यह उठता है कि आखिर क्यों इतनी कार्यवाहियों के बाद भी हादसे रुक नहीं रहे हैं। अगर इसकी जांच की जाए, तो सवाल हमारी रेल प्रणाली, उसके इंफ्रास्ट्रक्चर पर खड़ा होता है। दरअसल, हमारे देश में पटरियों की हालत बेहद खस्ता है। एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत की अधिकतर रेल पटरियों की हालत नाजुक है, जिस वजह से यहां पर हादसे लगातार होते रहते हैं।
यहां पर सवाल यह है कि सरदार देश में बुलेट ट्रेन चलाने की तैयारी कर रही है, वहीं आम जनता जिस ट्रेन से सफर करती है, उस पर कोई ध्यान नहीं दे रही है? एक के बाद एक हादसे हो रहे हैं और सरकारी तंत्र इससे केवल अपना पल्ला झाड़ता दिखाई दे रहा है। सवाल यह है कि आखिर कब तक आम आदमी को इस तरह के हादसों का शिकार होना पड़ेगा? आखिर कब इन हादसों पर ब्रेक लगेगा? सवाल यह भी है कि आखिर सरकार कब इन हादसों को लेकर संजीदा होगी और असल में आम आदमी की जिंदगी की लाइफ लाइन कही जाने वाली रेल व्यवस्था में सुधार करेगी? ताकि फिर कोई यात्री अपनी मंजिल पर पहुंचने से पहले ही मौत के मुंह में न समा जाए।
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