काहिरा: पीएम नरेंद्र मोदी अमेरिका के बाद मिस्र (Egypt) पहुंचे हुए हैं। आज रविवार (25 जून) को प्रधानमंत्री काहिरा की अल-हाकिम मस्जिद पहुंचे। 11वीं सदी में दाऊदी बोहरा समुदाय ने इस मस्जिद की मरम्मत करवाई थी। इसके साथ ही इस मस्जिद को UNESCO ने विश्व धरोहर स्थल में शामिल किया है। मस्जिद में पहुंचने पर बिहरा समुदाय के लोगों ने पीएम मोदी का शानदार स्वागत किया। पीएम ने यहां लगी तस्वीरों को देखा। इसके बाद मस्जिद में मौजूद लोगों से मुलाकात की।
पीएम मोदी ने मस्जिद की बेहतरीन वास्तुकला और नक्काशी को भी गौर से देखा। इसके बाद उन्हें कई तोहफे भी दिए गए। इसमें शीशे में बंद एक लकड़ी की नौकै, एक चीनी मिट्टी का बना बर्तन नुमा उपहार, मस्जिद की तस्वीर शामिल हैं। बता दें कि 1997 के बाद पहली दफा कोई भारतीय पीएम मिस्र की आधिकारिक यात्रा पर पहुंचे हैं। राजधानी काहिरा अपनी इस्लामी वास्तुकला के लिए पूरे विश्व में जानी जाती है। इस मस्जिद का निर्माण फातिमिद राजवंश के 5वें खलीफ अल-अजीज ने 10वीं श ताब्दी में आरम्भ करवाया था। वे अरब मूल के एक इस्माइली शिया राजवंश से संबंध रखते थे। यहां नमाज तो आरम्भ हो गई थी मगर इमारत का निर्माण संपन्न नहीं हो पाया था। एक साल में यहां एक ही रूम बनाया जा सका।
लगभग 12 वर्षों के बाद अल-अजीज के बेटे अल-हाकिम ने इसका निर्माण वापस आरम्भ करवाया। इसके बाद इसके तैयार होने में 10 वर्षों का समय लग गया। यह मस्जिद 120 मीटर लंबी और 113 मीटर चौड़ी थी। पहले यह मस्जिद काहिरा शहर के बाहर हुआ करती थी। हालांकि बाद में शहर की सरहदों को मस्जिद तक बढ़ा दिया गया। 13वीं सदी में मिस्र में ममलूक सल्तनत राज करने लगी। 1303 के भूकंप में इस मस्जिद को क्षति पहुंची। ममलूक सुल्तान अबु-अल-फतह ने इसका जीर्णोद्धार करवाया था। हालांकि यह कार्य सही तरीके से नहीं किया गया। बाद में इस मस्जिद का उपयोग जेल और अस्तबल के तौर पर भी किया गया।
नेपोलियन ने इसका किले के तौर पर इस्तेमाल किया। 20वीं सदी में इसे स्कूल भी बनाया गया। मगर, 1970 में दाऊदी बोहरा समुदाय के धर्मगुरु मोहम्मद बुरहानुद्दीन ने इसके जीर्णोद्धार का जिम्मा उठाया। वह भारत से जुड़े हुए थे। सामाजिक कार्यों के लिए भारत में उन्हें मरणोपरांत पद्मश्री से नवाज़ा भी गया। 24 नवंबर 1980 को इस मस्जिद को औपचारिक रूप से सभी के लिए खोल दिया गया। अब पर्यटक भी यहाँ जा सकते हैं। बता दें कि दाऊदी बोहरा भारत का एक काफी छोटा मुस्लिम समुदाय है। गुजरात में इस समुदाय की ठीक-ठाक आबादी है।
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