सफ़ेद रण में चुनावी गरज

सफ़ेद रण में चुनावी गरज
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गुजरात चुनाव महज चुनाव नहीं अग्नि परीक्षा है, देश में मौजूद दोनों प्रमुख पार्टियों के लिए. जहां कांग्रेस इसके जरिए अपना अस्तिस्त्व फिर से खड़ा करंने की कवायद में है, वहीं बीजेपी के लिए बात अब साख पर आ चुकी है. केंद्र सरकार के लिए गए सभी बड़े फैसलों पर आम जनता से लेकर खास लोगो तक की प्रतिक्रियाओं ने बीजेपी को भी सोचने पर मजबूर किया है.

2012  की तुलना में आलम जरा बदला-बदला नज़र आ रहा है. जीत के प्रति आश्वस्त बीजेपी के जहन में कही न कही संशय भी है. संशय उस अनहोनी का नहीं जो फ़िलहाल गुजरात में अप्रत्याशित है, संशय उन कीमती सीटों के चले जाने का है जो किले में सेंध लगाने का काम करेगी. बहरहाल पूरी ताकत झोंक दी गई है.

यदि कांग्रेस की बात की जाये तो मुद्दे इस बार इतने है की जनता का ध्यान खींचा जा सके, बस प्रेजेंटेशन की बात पर कांग्रेस के नम्बर हमेशा से काटे गए है. बड़े नामों का साथ न होना, इक्का-दुक्का लोगो की अगुवानी में कांग्रेस फिर पुराने तरीको से ही चुनावी समर में खड़ी है. खुद बीजेपी ने मौका दिया है कि घर में घुंस के मुँह तोड़ जवाब देते हुए सारी कसर निकाल ली जाये. साथ ही साथ गुजरात चुनाव ही तय करेगा की देश में आगामी राजनीति की दशा और दिशा क्या होगी.

क्या जनता अब भी बीजेपी के विकास के वादों पर सवार होना चाहती है या नोटबंदी, GST, विदेशी दौरे और राम मंदिर निर्माण के वादे की उदासीनता कुछ नया दिखाएगी. गुजरात का सफ़ेद रण अब चुनावी समर के लिए तैयार है. करना है तो बस इंतज़ार परिणामो तक का. सो जस्ट वेट एंड वाच...

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