नई दिल्ली: मोदी सरकार ने "वन नेशन, वन इलेक्शन" के विधेयक को मंजूरी देकर एक बड़ा कदम उठाया है। इस विधेयक का उद्देश्य पूरे देश में लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराना है। अगर यह बिल पास हो गया, तो देश में हर पांच साल में एक ही बार चुनाव होंगे। इससे जनता पर बार-बार मतदान का बोझ कम होगा और सरकार को चुनावी राजनीति से मुक्त होकर पांच साल तक जनहित के काम करने का अवसर मिलेगा। इस विधेयक को सबसे पहले जॉइंट पार्लियामेंट्री कमेटी के पास भेजा जाएगा, जहां सभी राजनीतिक दलों से सुझाव लिए जाएंगे। उसके बाद यह विधेयक संसद में पेश किया जाएगा और इसे कानून का रूप देने की प्रक्रिया शुरू होगी।
यह कदम पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता वाली उच्च स्तरीय समिति की सिफारिशों के आधार पर उठाया गया है। कमेटी ने लोकसभा, विधानसभाओं और स्थानीय निकायों के चुनाव एक साथ कराने की सिफारिश की थी। रामनाथ कोविंद ने इसे राष्ट्रहित में एक ऐतिहासिक कदम बताया और कहा कि इससे देश की जीडीपी में 1-1.5% तक की वृद्धि हो सकती है। उनका कहना है कि यह किसी पार्टी के हित का मुद्दा नहीं बल्कि पूरे देश के लिए फायदेमंद है।
इस पहल का इतिहास भी काफी पुराना है। भारत में 1951-52 के पहले आम चुनाव से लेकर 1967 तक लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव एक साथ होते थे। लेकिन 1967 के बाद उत्तर प्रदेश और अन्य राज्यों में राजनीतिक अस्थिरता के कारण यह चक्र टूट गया। 1971 की जंग के बाद लोकसभा चुनाव समय से पहले कराए गए, और तब से देश में अलग-अलग समय पर चुनाव होने लगे। हालांकि, 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान ओडिशा में लोकसभा और विधानसभा के चुनाव एक साथ हुए थे, जो इस अवधारणा का एक उदाहरण है।
इस विधेयक को लेकर राजनीतिक हलचल तेज हो गई है। जहां भारतीय जनता पार्टी और उसके सहयोगी दल इस कदम का समर्थन कर रहे हैं, वहीं कांग्रेस और आम आदमी पार्टी सहित कई विपक्षी दल इसका विरोध कर रहे हैं। विपक्ष का कहना है कि यह विधेयक केंद्र सरकार को राजनीतिक लाभ पहुंचाने की रणनीति है और संघीय ढांचे के लिए चुनौतीपूर्ण हो सकता है। वहीं, नीतीश कुमार की जेडीयू और चिराग पासवान जैसे एनडीए के सहयोगियों ने इस पहल का समर्थन किया है।
अगर यह विधेयक पास होता है, तो हर पांच साल में केवल एक बार चुनाव होंगे। इससे जनता को बार-बार मतदान की परेशानी से राहत मिलेगी और चुनावी खर्च में कटौती होगी। सरकार को भी चुनावी राजनीति से हटकर विकास के कार्यों पर ध्यान केंद्रित करने का पर्याप्त समय मिलेगा। हालांकि, विपक्षी दलों के तीव्र विरोध के चलते इसे संसद में पास कराना मोदी सरकार के लिए एक कठिन चुनौती होगी। अब देखना यह है कि यह विधेयक संसद में किस तरह आगे बढ़ता है और क्या सरकार विपक्ष को इसके समर्थन के लिए मना पाती है।