देश में प्रत्येक वर्ष सीवर तथा सेप्टिक टैंक की सफाई करने वाले कर्मचारियों की मौत की संख्या बढ़ती जा रही है। सितंबर 2020 में नेशनल कमीशन फॉर सफाई कर्मचारीज की ओर से एक आरटीआई के उत्तर में बताया गया था कि बीते 10 वर्षों में इस काम में लगे 631 व्यक्तियों की मौत हो गई है। वर्ष 2018 में जहां 73 व्यक्तियों की जान गई तो 2017 में 93 व्यक्तियों की मौत हो गई थी। सीवर या सेप्टिक टैंक में उतरकर उसे साफ करना बेहद ही जोखिम भरा काम होता है। ऐसे में यदि पहले से उसके भीतर की जहरीली गैसों की खबर प्राप्त हो जाए तो इन सफाई कर्मचारियों की बड़ी सहायता हो सकेगी। वैज्ञानिकों ने इसी मंशा को पूरा करने के लिए एक इलेक्ट्रॉनिक नाक विकसित की है।
कैसे काम करेगी नाक:- देश के वैज्ञानिकों ने बायोडिग्रेडेबल पॉलीमर तथा मोनोमर से लैस एक इलेक्ट्रॉनिक नाक डेवलप की है, जो दलदली इलाकों तथा सीवरों में उत्पन्न होने वाली एक जहरीली, संक्षारक तथा ज्वलनशील गैस- हाइड्रोजन सल्फाइड (H2S)- का पता लगा सकता है। हाइड्रोजन सल्फाइड (H2S), ऑक्सीजन की अनुपस्थिति में कार्बनिक पदार्थों के माइक्रोबियल ब्रेकडाउन के कारण पैदा होने वाला एक प्राथमिक गैस है तथा सीवर एवं दलदली इलाकों में इसके उत्सर्जन को सरलता से पहचाने जाने की आवश्यकता है।
सऊदी अरब की सहायता:- सऊदी अरब के अपने समकक्षों की सहायता से बेंगलुरु स्थित सेंटर फॉर नैनो एंड सॉफ्ट मैटर साइंसेज (सीईएनएस) के वैज्ञानिकों ने हवा के अणुओं अथवा ओलफैक्ट्री रिसेप्टर न्यूरॉन (ओआरएन) की पहचान के लिए जिम्मेदार न्यूरॉन का प्रतिरूपण करके एक असाधारण तौर पर संवेदनशील तथा चयनात्मक H2S गैस आधारित सेंसर विकसित किया है। सीईएनएस, भारत सरकार का विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के एक स्वायत्त संस्थान है।
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