लॉकडाउन के चलते सारे काम ठप पड़े हुए है. लेकिन, अब उन्हें शुरू करना आसान नहीं है. प्रशासन ने अब तक पीथमपुर की करीब 500 और इंदौर की 300 से ज्यादा फैक्ट्रियों को उत्पादन शुरू करने की अनुमति जारी कर दी है. सिर्फ अनुमति पत्र मिलने से ही उद्योगों की राह आसान नहीं हो पाई है. प्रशासन की ओर से मिली आधी-अधूरी अनुमति के साथ मजदूर की किल्लत और सप्लाई चेन की परेशानी के चलते ज्यादातर उद्योग उत्पादन ही शुरू नहीं कर सके हैं. इधर, कई उद्योगों में काम करने वाले श्रमिक लॉकडाउन के कारण अपने-अपने गांव या गृहनगर लौट गए हैं. ऐसे में उद्योगों के सामने श्रमिक संकट की स्थिति भी बन रही है.
बता दें की पीथमपुर औद्योगिक संगठन के अध्यक्ष गौतम कोठारी के अनुसार पीथमपुर की एक बड़ी टायर निर्माता कंपनी का ही दूसरा प्लांट पुणे में है. वहां की फैक्ट्री खुल चुकी है. उसे इंदौर की फैक्ट्री से क्वाइल सप्लाई होती है. इंदौर की फैक्ट्री उस क्वाइल का उत्पादन शुरू कर पुणे नहीं भेज पा रही है क्योंकि प्रशासन ने फैक्ट्री शुरू करने की अनुमति तो दी, लेकिन स्टाफ के परिवहन की अनुमति जारी नहीं की है. नतीजा इंदौर की फैक्ट्री में काम शुरू नहीं कर पा रही और पुणे का प्लांट भी इंदौर के इंतजार में अटका पड़ा हुआ है. कोठारी के अनुसार औद्योगिक क्षेत्र के सुपरवाइजर से लेकर ज्यादातर स्टाफ इंदौर से ही अपडाउन करते हैं. इन्हें फैक्ट्रियों की बसें ले जाती हैं. प्रशासन ने इन बसों को चलाने की अनुमति नहीं दी है. लिहाजा प्लांट बंद ही पड़े हैं.
हालांकि, फैक्ट्रियां कुछ मजदूरों को तो अपने यहां रुकवा लेगी, लेकिन सुपरवाइजर से लेकर अन्य स्टाफ परिवार छोड़कर कई सप्ताह के लिए फैक्ट्री परिसर में रुकने को राजी नहीं हो पा रहे हैं. एसोसिएशन ऑफ इंडस्ट्रीज मप्र (एआइएमपी) के अध्यक्ष प्रमोद डफरिया के अनुसार ज्यादातर श्रमिक पलायन कर चुके हैं. जो बचे हैं, उन्हें फैक्ट्रियों में ठहराना होगा. फैक्ट्री में ठहरने के लिए बहुत कम लोग राजी होते हैं. जो रुकने को तैयार हैं तो भी उद्योगपति इस लॉकडाउन में उनके लिए खाने से लेकर तमाम प्रबंध कैसे जुटा सकेंगे, यह भी बड़ा सवाल है.
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