भारत में काफी तेजी से कोरोना वायरस का कहर फैल रहा है. वही, पानी और आर्थिक विकास कुछ साल पहले फिक्की के एक सर्वे के अनुसार देश की 60 फीसद कंपनियों का मानना है कि जल संकट ने उनके कारोबार को प्रतिकूल रूप से प्रभावित किया है. इस सर्वे को पिछले साल चेन्नई की कंपनियों द्वारा उनके कर्मचारियों को दिए गए दिशानिर्देश से जोड़कर देखने की जरूरत है. जिसमें कहा गया है कि सभी कर्मचारी अपने घर से ही काम करें. जल संकट के चलते ऑफिस न आएं.
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आपकी जानकारी के लिए बता दे कि 1962 में भारत की प्रति व्यक्ति जीडीपी चीन की दोगुनी थी और इसकी प्रति व्यक्ति स्वच्छ भूजल की हिस्सेदार चीन की 75 फीसद थी. 2014 में भारत की स्वच्छ भूजल की प्रति व्यक्ति हिस्सेदारी चीन की 54 फीसद रह गई. इस समय तक चीन की प्रति व्यक्ति जीडीपी भारत से तीन गुना हो चुकी थी.
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इसके अलावा 2016 में विश्व बैैंक के एक अध्ययन में चेताया गया है कि अगर भारत जल संसाधनों का कुशलतम इस्तेमाल नहीं करता है तो 2050 तक उसकी जीडीपी विकास दर छह फीसद से भी नीचे रह सकती है. 2019 में नीति आयोग की रिपोर्ट में बताया गया कि देश के कई औद्योगिक केंद्रों वाले शहर अगले साल तक शून्य भूजल स्तर तक जा सकते हैैं. तमिलनाडु और महाराष्ट्र जैसे उद्योगों से भरे-पूरे राज्य अपनी शहरी आबादी के 53-72 फीसद हिस्से की ही जलापूर्ति सुनिश्चित करने में सक्षम हैं.2018 में शिमला की रोजाना जलापूर्ति 4.4 करोड़ लीटर से कम होकर 1.8 करोड़ लीटर जा पहुंची. पानी के अभाव में पर्यटन चौपट हो गया. ऐसे में पानी नहीं होगा तो पर्यटन नहीं होगा, उद्योग अपने कच्चे माल को तैयार नहीं कर पाएंगे. लिहाजा देश की पांच लाख करोड़ डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने का सपना मूर्त रूप नहीं लेगा.
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