नई दिल्ली: यूरोपीय संघ के नेता चार दिन तक चले मंथन के बाद आखिरकार कोरोना वायरस से निपटने के लिए एक विशाल फंड बनाने पर सहमत हो गए हैं. यूरोपीय संघ 750 अरब यूरो (लगभग 858 अरब डॉलर या 64.04 लाख करोड़ रुपये ) का फंड बनाने जा रहा है. इस फंड को कोरोना संकट से जूझ रहे यूरोपीय यूनियन के देशों को बचाने का ऐतिहासिक राहत प्लान बताया जा रहा है.
इन चार दिनों में तमाम नेताओं में जमकर बहस और चर्चा दोनों हुई और कई दफा ऐसा लगा कि सौदा नहीं हो पाएगा. फ्रांस ने तो एक बार यूनियन से ही बाहर हो जाने की धमकी दे डाली थी और हंगरी ने वीटो लगा दिया था. नीदरलैंड और ऑस्ट्रिया ने इतने उदार दिल से पैकेज देने पर सख्त विरोध जताया था. न्यूज एजेंसी AFP के अनुसार, जर्मन चांसलर एंजेला मर्केल ने कहा कि, 'असाधारण हालात असाधारण कोशिशों की मांग करते हैं. सभी यूरोपीय लोगों के लिए इस काफी मुश्किलें समय में निश्चित रूप से बहुत कठिन वार्ता रही. यह बैठक सिर्फ सभी 27 सदस्य देशों के लिए सफल रही, बल्कि यहां के लोगों के लिए भी .'
इस पैकेज से अरबों यूरो की रकम उन देशों को सहायता के रूप में दी जा सकती है जो कोरोना वायरस से सबसे अधिक प्रभावित हुए हैं. इनमें स्पेन और इटली भी शामिल हैं. नीदरलैंड की अगुवाई में 'फ्रगल्स' कहलाने वाले कुछ देशों के एक समूह ने इस पैकेज का सख्त विरोध किया और इस राहत पैकेज को गैर जरूरी करार दिया. लेकिन आखिर में सभी इस बात पर सहमति जताई कि कोरोना पूरे विश्व के लिए एक बड़ा संकट है और इससे निपटने के लिए एक दूसरे का सहयोग करना आवश्यक है. जिसके बाद पैकेज को हरी झंडी मिल पाई.
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