कोरोना महामारी आने के बाद भी मोदी सरकार ने 'गरीबी' को किया कम, रिपोर्ट में हुआ खुलासा

कोरोना महामारी आने के बाद भी मोदी सरकार ने 'गरीबी' को किया कम, रिपोर्ट में हुआ खुलासा
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नई दिल्ली: भारत में निर्धनता पर आपको कई प्रोपगेंडाबाज प्रोपगेंडा फैलाते नजर आएँगे किन्तु यदि अर्थशास्त्रियों की रिपोर्ट देखेंगे तो पता चलेगा कि भारत में निर्धनता बढ़ी नहीं बल्कि घटी है। हाल में नेशनल काउंसिल ऑफ एप्लाइड इकोनॉमिक रिसर्च (NCAER) द्वारा जारी किए गए रिसर्च पेपर से ये खबर सामने आई है कि कोरोना महामारी जैसी चुनौती के बाद भी भारत में 12 वर्षों में निर्धनता 12.7 प्रतिशत तक गिरी है।

थिंक टैंक NCAER के सोनाल्डे देसाई के नेतृत्व में अर्थशास्त्रियों के एक पेपर (जिसका शीर्षक ‘बदलते समाज में सामाजिक सुरक्षा दायरा पर पुनर्विचार’ है) में निर्धनता के आँकड़ों को लेकर यह अनुमान लगाया गया है। इस सर्वे में बताया गया है कि भारत में गरीबी अनुपात में तेजी से कमी आई है। 2011-12 में ये 21.2 प्रतिशत थी तथा अब घटकर 8.5 प्रतिशत हो गई है। ग्रामीण क्षेत्रों में ये आँकड़ा 24.8 से 8.6 प्रतिशत तक आया है। वहीं, शहरी क्षेत्रों में निर्धनता 13.4 प्रतिशत से घटकर 8.4 प्रतिशत तक। इस रिसर्च के लिए शोधकर्ताओं ने इंडियन ह्यूमन डेवलपमेंट सर्वे की वेव 3, वेव 2 और वेव 1 के डेटा को आधार बनाया। साथ ही बताया कि देश में भले ही सरकार से मिलने वाले लाभों की वजह से ये परिवर्तन आया हो मगर ये बात भी ध्यान देने वाली है कि लोगों के जीवन में होने वाली घटनाएँ उन्हें फिर से निर्धनता में ढकेल सकती है। सोनल देसाई अपनी रिपोर्ट में इस बात को बताती है कि इन 8.5 प्रतिशत निर्धन लोगों में 3.2 प्रतिशत जन्म से गरीब थे जबकि 5.3 प्रतिशत जीवन में हुई किसी दुर्घटना के पश्चात् गरीब बने।

रिसर्च में देश में हो रहे आर्थिक विकास एवं निर्धनता में आई कमी जैसे मुद्दों पर बात की गई। दस्तावेज में बताया गया है कि इकनॉमिक ग्रोथ और निर्धनता की स्थिति में कमी से एक गतिशील परिवेश पैदा होता है। इसके लिए कारगर सामाजिक सुरक्षा कार्यक्रमों की आवश्यकता होती है। सामाजिक परिवर्तन की रफ्तार के साथ सामाजिक सुरक्षा प्रणालियों को बनाए रखना भारत के लिए एक प्रमुख चुनौती होगी। बता दें कि इससे पहले नीति आयोग के CEO बी वी आर सुब्रह्मण्यम ने कुछ महीने पहले भारत में निर्धनता को लेकर अनुमान लगाते हुए कहा था कि नवीनतम उपभोक्ता व्यय सर्वेक्षण से संकेत प्राप्त होता है कि देश में निर्धनता घटकर 5 प्रतिशत रह गई है। ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में लोगों के पास पैसे आ रहे हैं।

NCAER क्या है?
नेशनल काउंसिल ऑफ एप्लाइड इकोनॉमिक रिसर्च भारत का सबसे पुराना एवं सबसे बड़ा स्वतंत्र, गैर-लाभकारी, आर्थिक नीति अनुसंधान थिंक टैंक है। 1956 में नई दिल्ली में स्थापित, इसने अपनी स्थापना के कुछ दशकों के अंदर ही बहुत राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान हासिल कर ली। यह सरकारों एवं उद्योग के लिए अनुदान-वित्तपोषित अनुसंधान और कमीशन अध्ययन का कार्य करता है तथा यह वैश्विक स्तर पर उन कुछ थिंक टैंकों में से एक है जो प्राथमिक डेटा भी एकत्र करते हैं।

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